श्रावण मास माहात्म्य – अध्याय-30 (श्रावण मास का माहात्म्य फल)
शिव बोले-हे पुत्र! मैंने जो तुम्हें श्रावण मास का माहात्म्य बतलाया है वह दूसरा कोई एक शाताब्दी में भी नहीं कर सकता है| सती ने राजा दक्ष प्रजापति के यज्ञ में स्वयं को भस्मीभूत करके राजा हिमालय की पुत्री बनकर इसी श्रावण मास का व्रत किया तो उन्हें पति रूप में मेरी प्राप्ति हुई थी| यह माह मुझे अति प्रिय है| यह माह सर्दी और गर्मी के विचार से बहुत ही उचित है| इस मास में राजा और प्रजा दोनों को ही अपने शरीर को वैदिक मन्त्रों से उच्चारित भस्म से पूरित कर लेना चाहिए अथवा जल मिला हुआ बारह त्रिपुंडू भस्म लगानी चाहिए| माथा, छाती, दोनों बाहु, दोनों स्कन्ध, सिर और पीठ में ‘मानस्तोके’ मन्त्र व सद्योजातादि’ छः अक्षरों वाले मन्त्र से समस्त शरीर पर भस्म रमा लेनी चाहिए और शरीर में 108 रुद्राक्ष वाली हो| गले में 32 रुद्राक्ष, सिर में 22 रुद्राक्ष, दोनों कणों 12, 24 रुद्राक्ष दोनों हाथों में, एक भाल पर और शिखाग्रभाग में धारण करना चाहिए| तब इस भांति 108 रुद्राक्ष शरीर पर सजाकर मेरा पूजन करना चाहिए|
हे पुत्र! इस मास को अत्युत्तम और मेरा का प्यारा जान मेरा तथा कृष्ण का पूजन करना अनिवार्य है| मुझे स्वयं इस मास में पड़ने वाली जन्माष्टमी बहुत अधिक भाती है| इस मास में ही देवकी के गर्भ से भगवान् श्रीकृष्ण का पृथ्वी पर आगमन हुआ था|
हे पुत्र सनत्कुमार! यह तो मैंने तुम्हें श्रावण मास का लेशमात्र माहात्म्य कहा है| अब तुम और क्या जानना चाहते हो? इस पर सनत्कुमार बोले-हे प्रभु! अब आप कुछ तथ्यरूप में बतलाए क्योंकि अभी तक तो मैं आनन्द-सागर में मग्न था और मैं सब कुछ भूल चुका था| यदि आप मुझे तथ्यरूप बतलायेंगे तो मुझे क्रमानुसार पता चलेगा| मैं वह सब श्रद्धा से ग्रहण कर लूंगा|
भगवान् शिव बोले-हे पुत्र! अब में अनुक्रमणिका कहता हूँ| पहले शौनक का प्रश्न है, तब सूत का उत्तर आता है| तुमने फिर से सुन्दर प्रश्न किया| तुमने जो मेरी स्तुति की तो वह नाम निर्वचन सहित हुई| उत्तम क्रम में सब उद्देश्य पूर्ण हैं| अति उत्तम ढंग से तुम्हारा, सवाल, नक्त व्रत, रुद्राभिषेक एवं लक्षपूजा विधान, दीपदान माहात्म्य में किसी बहुत प्रिय वस्तु का त्याग, रुद्राभिषेक का फल और इसके पंचामृत से फल, जमीन पर सोना, मौन व्रत फल, धारणा-पारण विधि, मासिक व्रत कथन, सोमयाग में लक्षवर्ती विधि कथा, कोटिलिंग विधि, अनोदन व्रत कथन, दविष्यान्न आहार, पत्तल पर आहार, शाक छोड़ देना, पृथ्वी-शयन, प्रातः स्नान, दम एवं शम का कथन, स्फटिक व अन्य लिगों में जप-पूजा का फल, प्रदक्षिणा, नमस्कार, वेद-परायण, पुरुष-सूक्त विधान ग्रहयज्ञ विधि, क्रमानुसार रवि, सोम, मंगल, बुध, वीरवार के व्रत, शुक्रवार को जीवन्तिका व्रत, शनिवार को नरसिंह व्रत, शनि, हनुमान और पीपल व्रत कथा, रोटक व्रत एवं औदुम्बर व्रत माहात्म्य, स्वर्णगौरी एवं दूर्वा-गणपति व्रत कथन पंचमी को नाग व्रत, छठ को सूपोदन, सप्तमी को शीतला का पवित्रारोपण, अष्टमी और नवमी को दुर्गा-पूजा दशमी को आशा व्रत, एकादशी द्वय व्रत, द्वादशी को विष्णु प्रीति के लिए पवित्रारोपण, त्रियोदशी को कामदेव व्रत, चतुर्दशी को शिवप्रीत्यर्थ पवित्रारोपण, पूर्णमासी को उपाकर्म उत्सर्ग एवं श्रवणी कर्म विधान सर्पबलि, हयग्रीव जयन्ती, सभादीप, रक्षाबन्धन, व गणेशजी का संकटमोचन व्रत, जन्माष्टमी व्रत व कथा, विधान, पिठोर व्रत, पोला संज्ञक वृषभ व्रत, दर्भ संग्रह, नदी रजस्वला व्रत, सिंह की संक्रांति में गौर का प्रसव होने पर अनिष्ट दूर करने वाला व्रत, कर्क-सिंह के सावन में दान, स्नान सहित मास का माहात्म्य का सुनना, वाचन और व्यास-पूजा, महर्षि अगस्त्य अर्घ्य विधि, कर्म तथा यथा उपवासों के फल का निर्णय व मास के माहात्म्य सुनने से मास के सब उपवासों से सुफल का भागी होता है|
शिव बोले – हे वत्स! अब तुम अपने हृदय में यह क्रम रखों| इस खंड को सुनने वाला व सारे सावन मास का माहात्म्य सुनने वाला सब फलों में अपना भाग पाता है| इस मास में कोई एक व्रत करने वाला भी मेरे प्रेम का पात्र बन जाता है|
सूतजी ने महर्षि शौनक और अन्य ऋषियों से बतलाया – हे ऋषियों! कानों में अमृत पड़ जाने से हम सभी कृतकृत्य हो गये| तब सनत्कुमार भी अन्य ऋषियों को सादर अनुमति पाकर व उनकी स्तुति कर स्वयं भी शिव का स्मरण करते हुए अपने आश्रम को प्रस्थान कर गये| अतः आप जन भी इस गर्भ-रहस्य को अन्य किसी को न बताएं|
हे ऋषियों! मैंने आप सबको आपकी योग्यता के अनुसार यह सब विस्तार से बतलाया है –