श्रावण मास माहात्म्य – अध्याय-25 (पिठोर उपवास)
भगवान शिव बोले-हे सनत्कुमार! श्रावण मास में अमावस्या को सबके लिए सम्पत्ति प्रदायक पिठोर व्रत करना श्रेष्ठ होता है| सर्वाधिष्ठा बनने से कलश को ‘पीठ’ कहते हैं| उसमें जो पूजा में काम आने वाली चीज होती है वह और कहलाती है| इसलिए इस व्रत का नाम पिठोर व्रत है| अब मैं तुम्हें इस व्रत की विधि बतलाता हूँ| ध्यान से श्रवण करो| वह दीवार जहाँ पर यह पूजन होना है वह सफेद रंग अथवा पीले रंग की हो तब उस पर ताम्रा रंग करवायें| व्रती को मध्य भाग में शिव-पार्वती की प्रतिमा बनवानी चाहिए| जैसे चौसल्ला चतु:शाला, रसोईघर, सात खजाने, देव-मन्दिर, औरतों के कमरे तथा अन्य भव्य वस्तुओं से उसको सुशोभित करें| दरवाजे चार दीवारी वाले बनवायें| वहाँ पर गौ, भैंस, घोड़े, ऊँट, हाथी, पालकी तथा अन्य प्रकार की गाड़ियाँ पात्र, खाट, खटोले, पीढ़े, शय्या, तकिये, मसनद आदि भी हों| बिल्ली, मैना व भांति-भांति के पशु-पक्षी, पुरुष व नारी के विधि प्रकार के गहने बिछौने, गलीचे आदि भी हों|
वहाँ यज्ञ हेतु सभी बर्तन, दण्ड, स्तम्भ, मथने की तीन रस्सियाँ, मक्खन, दही, मट्ठा, तक्र, घृत, तिल, तेल, अक्षत, अरहर, मक्का, जौ व अन्न भी हों| सिलबट्टा, चूल्हा, झाडू, सभी पुरुष व स्त्रियों के वस्त्रं भी हों| मूसल, पंखा, चक्की, छत्र, चंवर, जूता, खड़ाऊं, दास-दासी, नौकर-चाकर, धनुष-बाण, तोप, तलवार तथा अन्य अस्त्र भी हों| वहाँ पर त्रिशूल, मुद्गर, परिघ व चक्र, कलम, दवात, दीपक, दीवट, स्वादिष्ट पकवान और अनकही वस्तुएं भी वहाँ हों| उन सभी व अन्य वस्तुओं को दीवार पर छपवाकर उनकी सोलह उपचारों से पूजा करनी चाहिए|
विभिन्न प्रकार की गन्ध, धूप, चन्दन आदि देकर ब्राह्मण, सध्वा नारी को भोजन कराकर विदा करें| अम्बिका सहित प्रभु से प्रर्थाना करें-हे साम्ब! हे दयानिधि! हे शशिकान्त! हे शेखरं! हे नाथ! आप मेरे इस व्रत से हर्षित हों| मेरी सभी मनोकामनाओं को पूरा करें| इस तरह लगातार पाँच वर्ष तक व्रत के बाद उद्यापन करें| शिव-मन्त्र से व घी (शुद्ध) और बिल्व-पत्र का हवन में प्रयोग करें| 1008 या 108 आहुतियाँ दें|
हे पुत्र! इस प्रकार होम की संख्यायें पूर्ण हो जाती हैं| आचार्य की पूजा करके दीनों को भी दक्षिणा दें| व्रती को तब अपने संबंधियों के साथ स्वयं भी प्रेमपूर्वक भोजन करना चाहिए| इस विधि से सारी मनोकामाएं पूर्ण होती हैं| वह सब जो इस नश्वर संसार में उपलब्ध है, वह व्रती को अनायास ही प्राप्त हो जाता है|
शिव बोले-हे सनत्कुमार! मैंने तुम्हें पिठोर व्रत के बारे में सब कुछ कह सुनाया है| यह सबसुख, धन, सम्पत्ति का प्रदाता है| सारी उचित मनोकामनाएं भी इससे पूरी होती हैं|