सन्त वचन पलटे नहीं
जब गुरु गोबिन्द सिंह साहिब पहली बार मालवा गये, वह उजाड़ इलाक़ा था, बारिश की कमी के कारण वहाँ गेहूँ नहीं होता था, जौ और चने होते थे| वहाँ के लोगों ने गुरु साहिब की बहुत सेवा की| उस समय बीकानेर को कौन जानता था! डल्ला बराड़ क़ौम का सरदार था| एक दिन गुरु साहिब और डल्ला घूम रहे थे, वहाँ आक लगे हुए थे| उनकी तरफ़ इशारा करके गुरु साहिब ने कहा, “देख कितने अच्छे आम हैं|” डल्ले ने कहा, “जी! आक हैं!” गुरु साहिब ने कहा, “तू कह दे आम हैं| कहता है, “मैं कैसे कह दूँ आम हैं? ये आक हैं|” एक और जगह काई (घास) खड़ी थी, गुरु साहिब ने कहा कि कितना अच्छा गेहूँ खड़ा है| डल्ला कहने लगा, “यह काई है|” गुरु साहिब ने कहा, “तू कह दे यह गेहूँ है|” डल्ला बोला, “जी! मैं यों ही क्यों कह दूँ? यह तो घास है|” गुरु साहिब कहने लगे, “जा, ओ भले लोग! अगर तू कह देता तो यहाँ गेहूँ भी हो जाता, आम भी हो जाते| लेकिन अब नहीं| तेरे मरने के बाद आम और गेहूँ सबकुछ होगा| नहरें बहेंगी|” आजकल वहाँ जाकर उस इलाक़े को देखो|
सन्त जो कहते हैं उसमें कोई राज़ होता है| उनके शब्द व्यर्थ नहीं होते|
उनको (मुर्शिद को) सही समझो क्योंकि वे सच्चे और भरोसे
योग्य है| उनके उपचार में जादुई कमाल है, उनके वचनों में
अल्लाह की ताक़त समायी हुई है| (मौलाना रूम)