सच्चा परोपकारी
जेलख़ाने में क़ैदियों की बुरी हालत देखकर एक परोपकारी आता है और यह सोचकर कि इनको ठण्डा पानी नहीं मिलता, दस-बीस बोरियाँ चीनी की लाकर और कुछ बर्फ़ मिलाकर ठण्डा शरबत पिलाकर उनको ख़ुश कर जाता है| एक अन्य परोपकारी आता है और यह देखकर कि उनको अच्छे गेहूँ की रोटी नहीं मिलती, बाजरा खाते हैं, कई मन मिठाई मँगवाकर खिला देता है| क़ैदी और ख़ुश हो जाते हैं| इसी प्रकार तीसरा परोपकारी आता है और यह देखता है कि उनको अच्छे कपड़े नहीं मिलते, बल्कि मोटे मिलते हैं| वह उनको अच्छे नये कपड़ों की पोशाकें बनवाकर पहना देता है| क़ैदी और भी ख़ुश हो जाते हैं| उन सबने सेवा की, सेवा करनी भी चाहिए लेकिन क़ैदी जेलख़ाने में ही रहे| हमें भी परोपकार करना चाहिए, लेकिन हमारा परोपकार किसी को चौरासी के जेलख़ाने से आज़ाद नहीं कर सकता| अब फिर इस जेलख़ाने की मिसाल की तरफ़ आओ| एक व्यक्ति के पास जेलख़ाने की कुंजी है| वह आकर जेलख़ाने के दरवाज़े ही खोल देता है और क़ैदियों से कहता है कि अपने-अपने घर चले जाओ| सबसे अच्छा परोपकारी कौन हुआ? आप ख़ुद ही सोच सकते हैं| जिसने आज़ाद कर दिया|
सन्त-महात्मा दुनिया के जेलख़ाने की कुंजी लेकर आते हैं और वह कुंजी नाम है|
गुलाम हमेशा घर में नहीं रहता; पर ‘पुत्र’ हमेशा रहता है| इसलिए अगर ‘पुत्र’ तुम्हें आज़ाद कर देगा तो तुम सचमुच आज़ाद हो जाओगे|’ (सेंट जॉन)