मन को वश में करना
रामचन्द्र जी के गुरु वसिष्ठ जी ने एक बार रामचन्द्र जी से कहा कि अगर कोई कहे कि मैंने हिमालय पहाड़ उठा लिया, मैं दो क्षणों के लिए मान लेता हूँ कि शायद कोई ऐसा व्यक्ति हो, जिसने पहाड़ उठा लिया हो| अगर कोई कहे कि मैंने समुद्र पी लिया, मानने योग्य बात तो नहीं है, मगर मैं दो मिनट के लिए मान लेता हूँ कि शायद कोई ऐसा व्यक्ति है जिसने समुद्र को पी लिया हो| अगर कोई कहे कि मैंने सारी दुनिया की हवा को क़ाबू कर लिया है तो यह भी मानने की बात नहीं, मगर मैं एक मिनट के लिए मान लेता हूँ| लेकिन अगर कोई कहे कि मैंने मन को वश में कर लिया है तो मैं यह मानने को हरगिज़ तैयार नहीं| मन एक ऐसी ताक़त है, जो आसानी से वश में नहीं आती|
बिनु सबदै हउमै किनि मारी|| (गुरु अमर दास जी)