महात्मा बुद्ध और गडरिया
महात्मा बुद्ध के समय का ज़िक्र है कि एक चरवाहा भेड़-बकरियों का झुण्ड लेकर चला जा रहा था| एक बकरा लँगड़ा था और धीरे-धीरे चलता था| चरवाहा उसको झुण्ड के साथ मिलाने के लिए झण्डे मारता था| महात्मा बुद्ध ने देखा और बड़े दु:खी हुए| उस पर दया दिखाते हुए चरवाहे से पूछा, “तुझे कहाँ जाना है? उसने कहा कि वह जो सामने पहाड़ी दिखायी देती है, मैं वहाँ रोज़ बकरियाँ चराता हूँ| बस वहाँ जाना है| महात्मा बुद्ध ने कहा कि अगर मैं इस लँगड़े बकरे को उठाकर वहाँ छोड़ आऊँ तो तुझे कोई एतराज़ तो न होगा| उसने हँसते हुए कहा, “नहीं”| महात्मा बुद्ध ने बकरे को उठाकर उस पहाड़ी पर बाक़ी भेड़ों के साथ छोड़ दिया|
महात्मा को सबसे प्यार होता है, पशुओं के साथ, पक्षियों के साथ और अन्य जीवों के साथ भी|
जब हृदय में मालिक का प्रेम जाग्रत होता है तो उसके द्वारा पैदा किया गये सारे जीव-जन्तुओं के प्रति हार्दिक प्रेम जाग उठता है और मालिक के पिता होने का भाव और मनुष्य-मात्र के प्रति भ्रातृ-भाव पैदा हो जाता है| (महाराज सावन सिंह)