ख़ुदा का महल

गुरु नानक साहिब जब काबा में जो मक्का शरीफ़ में है, काज़ी रुकनूद्दीन से मिले, तो उसने पूछा कि ख़ुदा का महल कैसा है? उसकी कितनी खिड़कियाँ हैं? कितने बुर्ज हैं? कितने किंगरे हैं? अब ये कोई मामूली सवाल नहीं थे, गहरे विचार के योग्य थे| गुरु साहिब ने जवाब दिया कि इस शरीर के बारह बुर्ज हैं (तीन दाहिनी बाँह के जोड़, तीन बाईं बाँह के जोड़ और दोनों टाँगों के तीन-तीन जोड़, इस प्रकार कुल बारह हुए), नौ दरवाज़े हैं (दो कान, दो आँखें, दो नासिका के सूराख़, एक मुँह और दो सूराख़ नीचे के), बावन किंगरे हैं (हाथों-पैरों के बीस नाख़ून और बत्तीस दाँत)| दोनों आँखें दो खिड़कियाँ हैं| महल बहुत अजीब और बे-मिसाल है| गुरु साहिब कहते हैं:

ऊपर ख़ास महल पर देवै बांग खुदाए|

अर्थात् आपके शरीर के अन्दर ख़ुदा बाँग दे रहा है| यह शरीर ही ख़ुदा की मस्जिद है| हम बाहर माथे रगड़ते हैं| क्या कभी किसी को वह बाहर मिला है? किसी को नहीं| बाँग (शब्द-धुन) तो हरएक के अन्दर हो रही है, लेकिन लोग सोये हुए हैं:

सुते बांग न सुन सकन रिहा खुदाइ जगाइ|

वह मालिक तो जगाना चाहता है लेकिन कोई जागता ही नहीं| फिर कहते हैं:

सुती पई निभाग बस सुने न बांगां कोइ|

वे लोग बदक़िस्मत हैं जो रात को जागकर उस बाँग (शब्द-धुन) को नहीं सुनते:

जो जागे सेइ सुने सांई संदी सोइ|

जो जागता है, उसकी सुरत शब्द में लगती है, वही मालिक ही आवाज़ यानी शब्द को सुनता है|

हरि मंदरु एहु सरीरु है गिआनि रतनि परगटु होइ|| (गुरु अमर दस जी)

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