धरती की परिक्रमा
शिव जी के लड़के कार्तिकेय और गणेश जी ने एक दिन शिव जी से पूछा कि आप अपनी गद्दी किसको देंगे? शिव जी ने कहा कि जो धरती की परिक्रमा करके पहले वापस आ जाये| अब गणेश जी की सवारी थी चूहा और कार्तिकेय की सवारी थी मोर| कार्तिकेय तो मोर पर सवार होकर धरती की परिक्रमा करने चल पड़ा| इधर गणेश जी ने यह जानवर कि गुरु ही कुल-मालिक है, सारी सृष्टि में वह व्यापक है, शिव जी को ही माथा टेक दिया और उन्हीं की परिक्रमा कर ली| शिव जी महाराज ने ख़ुश होकर गणेश जी को वर दिया कि जहाँ कहीं पूजा होगी उनके नाम से शुरू होगी| भारत में गणेश की पूजा तो सभी करते हैं पर कार्तिकेय को कोई जानता भी नहीं|
गुरु की पूजा में सबकी पूजा आ जाती है|
गुरु पूजा में सब की पूजा| जस समुद्र सब नदी समाज||
गुरु के बिना सब कर्म-धर्म निष्फल है, ‘बिन मुर्शिद कामल
बुल्लया तेरी ऐवें गई इबादत कीती|’ जब तक जीव की अन्तर
की आँख नहीं खुलती और हक़ीक़त से सम्बन्ध नहीं होता, उसका
कल्याण नहीं हो सकता| इस कार्य के लिए हमें किसी गुरु की
शरण लेनी पड़ती है|
(महाराज सावन सिंह)