दरवेश ने प्राण क्यों त्यागे?
फ़रीदुद्दीन अत्तार, जो बाद में ईरान का महान सूफ़ी सन्त बना और जिसका फ़ारसी का कलाम संसार में मशहूर है, पहले इत्र बेचने की दूकान किया करता था| उसकी ज़िन्दगी में अचानक ज़बरदस्त परिवर्तन आया और वह निपट संसारी से प्रभु का सच्चा भक्त बन गया| इस परिवर्तन की कहानी इस प्रकार है :
एक दिन अत्तार ग्राहकों के साथ व्यस्त था कि एक दरवेश ने आकर उससे खै़रात माँगी| अत्तार ने उसकी ओर कोई ध्यान न दिया मानो उसने दरवेश को देखा ही न हो| दरवेश बार-बार आवाज़ लगाता रहा, लेकिन अत्तार हर बार अनसूनी करता रहा|
अन्त में दरवेश ने बिगड़कर कहा, “अत्तार, तुझे देखकर मुझे हैरानी होती है| तू दुनिया के काम में इतना फँसा हुआ है कि तुझे यह होश नहीं कि तेरा असल काम क्या है| मुझे समझ नहीं आती कि तेरी जान कैसे निकलेगी?” अत्तार ने उलटी चोट की, “मित्र, जिस तरह तेरी जान निकलेगी मेरी भी निकल जायेगी|” दरवेश ने कहा, “तू सोच ले कि जो कुछ तूने कहा है, सोचकर कहा है, सच्चे दिल से कहा है|”
अत्तार ने कहा, “हाँ, मैंने जो कुछ कहा है सोच-समझकर कहा है और सच्चे दिल से कहा है|” यह सुनकर दरवेश उसकी दुकान के सामने ज़मीन पर लेट गया| बोला, “इल्लिल्लाह (धन्य है परमात्मा)|”
यह कहते हुए दरवेश ने उसी समय प्राण त्याग दिये| इस घटना ने अत्तार को पूरी तरह झकझोर दिया| उसके अन्दर फ़ौरन विचार आया कि दरवेश तो मुझे ज़िन्दगी और मौत का भेद समझाने के लिए आया था| वह सोचने लगा कि दरवेश ठीक ही कहता था कि मुझे मालिक ने भेजा किस काम के लिए है और मैं कर क्या रहा हूँ| क्या मैं दुनिया में इत्र बेचने के लिए आया हूँ या ख़ुदा की तलाश करने के लिए आया हूँ?
अत्तार ने अपनी दुकान सदा के लिए बन्द कर दी और दरवेशों जैसा चोला पहन लिया| वह परमात्मा की तलाश में घर से निकल पड़ा| उसकी तलाश कामयाब हुई और वह पूर्ण सूफ़ी दरवेश बन गया|