बाबा नामदेव का कपड़े बेचना
नामदेव जी एक पूर्ण सन्त हुए हैं| उनके गुरु ने उन्हें नाम की दौलत दी जो संसार में जब से अमूल्य वस्तु है| नामदेव के घरवाले सभी सांसारिक लोग थे इसलिए आप इस आन्तरिक भेद को उन से छुपाकर रखते थे| व्यवसाय से वह छीपे का कार्य करते थे| छः दिन वह कपड़े ठाकते और सातवें दिन कपड़ा बेचने के लिए बाज़ार में ले जाते|
नामदेव जी के चार-पाँच भाई थे| एक बार की बात है कि सब भाइयों ने माल तैयार किया और मण्डी में बेचने के लिए ले गये| नामदेव को भी एक गठरी दे दी| और सभी तो माल बेचने लगे, नामदेव एक तरफ़ भजन में बैठ गये| जब शाम हुई, दूसरे भाई माल बेचकर चले आये पर नामदेव अपनी गठरी उसी तरह घर ले आये क्योंकि तब तक सभी ख़रीदार घर जा चुके थे| घरवालों ने पूछा कि माल उसी तरह क्यों ले आये? नामदेव ने कहा कि कोई ग्राहक नहीं आया| उन्होंने पूछा कि इतना माल किस तरह बिकेगा? क़ीमत कम-ज़्यादा करके दे आना था| नामदेव चुप रहे| फिर उन्होंने कहा कि उधार दे आना था| नामदेव फिर चुप रहे, जब बहुत तंग किया कि उधार ही दे आना था तो नामदेव ने पूछा, “उधार दे आऊँ?” कहने लगे, “जाओ उधार दे आओ|”
बाहर पत्थर पड़े हुए थे| नामदेव उठे और गठरी के सारे कपड़े खोलकर एक-एक करके सब पत्थरों पर डाल आये और एक पत्थर बतौर ज़ामिन के उठा लाये| घरवालों ने पूछा कि कपड़ा उधार दे आये हो? नामदेव ने कहा, “हाँ, दे आया हूँ|” उन्होंने पूछा कि लोग पैसे कब देंगे? नामदेव ने कहा कि सातवें दिन|
किसी ने आकर बताया कि नामदेव कपड़े बाहर पत्थरों पर डाल आये हैं और लोग पत्थरों पर से कपड़े उठाकर ले गये हैं| पैसे किसे देने थे? घर के लोग दुःखी हुए कि पैसे कहाँ से आयेंगे? नामदेव ने कहा कि आप चिन्ता न करो| मैं ज़ामिन साथ ले आया हूँ| जब सातवाँ दिन आया, घरवालों ने नामदेव से पैसे माँगे| नामदेव यह पत्थर उठा लाये| पत्थर सोने का बन चुका था| उन्होंने कहा कि जितने मूल्य के तुम्हारे कपड़े थे, उतना काट लो, बाक़ी रहने दो|
सतगुरु अपने सच्चे सेवकों की पल-पल सँभाल करते हैं|
पहले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करो तो यह सब वस्तुएँ
भी तुम्हें मिल जायेंगी| कल के लिए चिन्ता न करो, क्योंकि कल
का दिन अपनी चिन्ता आप कर लेगा| (सेंट मैथ्यू)