बाबा जी महाराज से मिलाप
हुज़ूर महाराज सावन सिंह जी को संगत प्रेम से बड़े महाराज जी कहती है| उनके पिता जी सूबेदार मेजर थे| उन्हें साधुओं से मिलने का शौक़ था| वे जिस साधू के पास जाते, आपको साथ ले जाते| आप जितना समय उनके साथ रहे, साधुओं से मिलते रहे| इस तरह धीरे-धीरे आपको साधुओं से मिलने का शौक़ हो गया| जब आप बड़े हुए तब यह शौक़ और बढ़ गया| इसमें कोई शक नहीं कि रूहानियत एक अमली ज्ञान है, क्योंकि एक वक़्त था जब आप ख़ुद कहते थे कि गुरु की क्या ज़रूरत है! आप अपने जीवन के शुरू के दिनों में विभिन्न संस्थाओं के प्रेसीडेण्ट, सेक्रेटरी आदि रहे| लेकिन जब आपको उच्चतर ज्ञान होने पर ग्रन्थों की ठीक व्याख्या की समझ आयी तो आप गुरु की तलाश करने लगे|
आप गुरु ग्रन्थ साहिब पढ़ा करते थे| उसमें बार-बार ज़िक्र आता था कि हरएक को गुरु की तलाश करनी चाहिए| इसलिए जहाँ से भी पता चला आप वहाँ गुरु की खोज में गये| बाग़ में फूल भी होते हैं, काँटे भी| कई महात्मा मिले, बातचीत हुई लेकिन वे दे कुछ न सके| फिर भी आप कहीं से निन्दा का भाव लेकर न आए|
आख़िर आपका तबादला पेशावर में हो गया| वहाँ आपने एक फ़क़ीर को देखा| उसने लंगोटी पहनी हुई थी, वह मस्ती में बैठा था| कई महीने आपने लगातार उसकी संगति की, वह कई बार आकर आपके पास महीना-महीना रहा, लेकिन उसने आपको कुछ न दिया| हारकर एक रात आपने उसे घेर लिया और कहा कि आज तो मुझे सच-सच बता दो| उसने कहा, “अगर सच पूछते हो तो बात यह है कि अभी तुम्हारा समय नहीं आया|” आपने पूछा कि क्या इस जन्म में समय आयेगा? वह बोला, “हाँ! आयेगा|” आपने कहा, “बताओ, वह कौन-सा महात्मा है?” उसने जवाब दिया कि वह ख़ुद ही तुम्हारे पास आ जायेगा|
जब आपका तबादला पेशावर से मरी पहाड़ पर हुआ तो एक दिन बाबा जैमल सिंह जी महाराज बीबी रुक्को से बोले, “हम इस सिक्ख के लिए यहाँ आये हैं|” बीबी रुक्को ने कहा कि इसने तो आपका अभिवादन भी नहीं किया| इस पर बाबा जी ने कहा कि अभी इस बेचारे को क्या पता! परसों यह मेरे पास आयेगा|
उन दिनों बाबा जी बाबू सुखदयाल के चौबारे में ठहरे हुए थे और श्री गुरु ग्रन्थ साहिब से सत्संग किया करते थे| दो दिन बाद बड़े महाराज जी के एक दोस्त ने उनसे कहा कि आप सन्तों-महात्माओं से मिलने के शौक़ीन हो, जाओ! आज आपको एक महात्मा के दर्शन करवाऊँ| वह आपको उस दिन बाबा जी महाराज के पास ले गया| आप कई दिन उनकी संगति में रहे| आप सवाल करते गये, बाबा जी जवाब देते गये| जो आपके बीस साल के संशय थे, वे चार दिनों में ही ख़त्म हो गये| आपने नाम के लिए अर्ज़ की पर साथ ही यह भी कहा कि राधास्वामी नाम को आप सुनना नहीं चाहते, यह नया लफ़्ज़ आपके दिल में न डाला जाये| बाबा जी महाराज ने पूछा, “क्या कोई बानी तुम्हारे नित-नेम में है?” आपने कहा, “जी, ‘जपुजी साहिब’ और ‘जाप साहिब’ मेरे नित-नेम में हैं|” बाबा जी कहने लगे कि ‘जाप साहिब’ में गुरु गोबिन्द सिंह जी ने मालिक के कितने नये नाम रखे हैं? आपने कहा, “जी, गिने तो नहीं लेकिन ख़्याल है, कोई बारह-चौदह सौ होंगे|” तब बाबा जी महाराज कहने लगे, “अगर एक महात्मा ने वाहेगुरु का एक और नाम ‘राधास्वामी’ रख दिया तो क्या ज़ुल्म हो गया?” वहाँ स्वामी जी महाराज की पोथी ‘राधास्वामी सार बचन छन्द-बन्द’ रखी हुई थी| बाबा जी महाराज ने उसमें से यह पंक्तियाँ पढ़कर सुनायीं :
राधा आदि सुरत का नाम| स्वामी आदि शब्द निज़ धाम||
सुरत शब्द और राधास्वामी| दोनों नाम एक कर जानी||
बाबा जी महाराज ने कहा कि सुरत-शब्द का यही मार्ग गुरु ग्रन्थ साहिब का है और यही स्वामी जी महाराज कह रहे हैं| एक ‘राधा’ का लफ्ज़ ज़्यादा रखा है| ‘राधा’ का अर्थ है रूह या आत्मा और ‘स्वामी’ का अर्थ है मालिक यानी परमात्मा| आपकी तसल्ली हो गयी| फिर जो दात बाबा जी ने बख़्शनी थी आपको बख़्श दी| आप दस दिन की छुट्टी लेकर उनके पास रहे| आपके जो और भी संशय थे, उन्होंने इस समय के दौरान दूर कर दिये|
सो गुरु के बिना बानी की भी समझ नहीं आती|