अटल क़ानून
रामायण में आता है कि बाली ने तपस्या करके वर लिया था कि जो भी लड़ने के लिए उसके सामने आये, उसका आधा बल बाली में आ जाये| इसी कारण जब भी सुग्रीव उससे लड़ाई करने जाता, पराजित होकर लौटता| इस तरह बाली की शक्ति हमेशा बढ़ जाती जब कि उसके दुश्मन की ताकत क्षीण हो जाती|
रामचन्द्र जी महाराज को इस भेद का पता था| जब सुग्रीव बाली के ख़िलाफ़ मदद लेने उनके पास आया तो अपना बल सुरक्षित रखने के लिए उन्होंने पेड़ों की ओट में खड़े होकर बाली पर तीर चलाया और उसे मार डाला| मरते समय बाली ने रामचन्द्र जी महाराज से कहा, “मैं बेक़सूर था, मैंने आपका कुछ नहीं बिगाड़ा था| अब इसका हिसाब आपको अगले जन्म में देना पड़ेगा|”
सो अगले जन्म में रामचन्द्र जी कृष्ण महाराज बने और बाली भील बना| जब कृष्ण महाराज महाभारत के युद्ध के बाद एक दिन जंगल में पाँव पर पाँव रखकर सो रहे थे, तो भील ने दूर से समझा कि कोई हिरन है, क्योंकि उनके पैर में पद्म का चिन्ह था जो धूप में चमककर हिरन की आँख जैसा लग रहा था| उसने तीर-कमान उठाया और निशाना बाँधकर तीर छोड़ा जो कृष्ण महाराज को लगा| जब भील अपना शिकार उठाने के लिए पास आया तो उसे अपनी भयंकर भूल का पता चला| दोनों हाथ जोड़कर वह श्री कृष्ण जी से अपने घोर पाप की क्षमा माँगने लगा| उसी समय कृष्ण महाराज ने उसे पिछले जन्म की घटना सुनायी और समझाया कि इसमें उसका कोई दोष नहीं था, यह तो होना ही था| उन्हें अपने कर्मों का क़र्ज़ा चुकाना ही था|
कर्मों का क़ानून अटल है| कोई भी इससे बच नहीं सकता, अवतारी पुरुष भी नहीं|
जेहा बीजै सो लुणै करमा संदड़ा खेतु|| (गुरु अर्जुन देव)