अनजाने में किया कर्म
बाबू बृजलाल पोठोहार के रहनेवाले एक सत्संगी थे| बड़े महाराज जी को नम्बर आठ माउण्टेन बैटरी पर मिले थे| वे क्लर्क थे| एक बार लम्बी छुट्टी पर जब वह परिवार सहित वहाँ गये हुए थे तो बीमार हो गये| जब मौत आयी तो पास बैठे सब घरवालों से कहा कि सब बाहर हो जाओ ताकि सतगुरु आ जायें| जब सब बाहर हो गये तो सतगुरु आ गये|
इतने में एक डॉक्टर आया| घरवालों को बाहर देखकर बोला कि अन्दर चलो, बृजलाल को देखें| अब वह तो अपने ध्यान में मग्न था| बिना बताये डॉक्टर ने शराब और अण्डे से बनी हुई दवाई उसके मुँह में डाल दी| उसने पूछा कि यह क्या पिलाया है? डॉक्टर ने जवाब दिया कि दवाई है| उसने कहा कि तुमने बहुत बड़ा पाप किया है| सतगुरु आये हुए थे, लेकिन अब वह कहकर चले गये हैं कि चार दिन और तड़प ले, फिर तुझे ले जायेंगे, क्योंकि तेरे मुँह में शराब और अण्डे डाले गये हैं|
वह चार दिन तड़पता रहा| आख़िर अपनी पत्नी से बोला कि तू मेरी अधांर्गिनी है| मेरी आख़िरी सेवा कर ले, फिर मौक़ा नहीं मिलेगा| उसने पूछा, “क्या?” बृजलाल ने कहा कि दरवाज़े पर बैठ जा, जब तक मेरी जान न निकल जाये, उठना नहीं, और किसी को अन्दर नहीं आने देना| पत्नी ने ऐसा ही किया|
सो कर्मों का हिसाब चुकाये बिना छुटकारा नहीं होता| अगर भूल से ज़हर खा लिया जाये तो भी उसके असर से नहीं बचा जा सकता|
ऐसी घटनाएँ होती रहती हैं कि अन्त समय अभ्यासी पूरे होश में चोला छोड़ते हैं|
अन्त समय सतगुरु के द्वारा चेताये गये जीव को लेने यम-काल नहीं
आता| सतगुरु स्वयं आकर आत्मा को अपने साथ ले जाते हैं|
(महाराज सावन सिंह)