आधी रात का सूरज
एक बार का ज़िक्र है, गुरु नानक साहिब के पास आपके बड़े लड़के श्री चन्द जी बैठे थे| आधी रात का समय था| आपने कहा कि कैसा सुन्दर सूरज निकला हुआ है! श्री चन्द जी ने कहा, पिता जी, इस समय आधी रात है, सूरज कहाँ| थोड़ी देर बाद दूसरे लड़के लखमी दास जी आये तो गुरु साहिब ने फिर वही वचन किया कि कितना सुन्दर सूरज है! लखमी दास ने भी कहा कि इस समय सूरज कहाँ से आया?
जब उन्होंने यही वचन भाई लहणा (गुरु अंगद देव जी) से किया कि भाई जी सूरज निकला हुआ है, जाओ कपड़े धोकर लाओ| भाई जी इस राज़ से वाक़िफ़ थे, हर रोज़ अभ्यास में सूरज देखते थे| उन्होंने कहा, “हाँ महाराज, ख़ूब धूप निकली हुई है, मैं अभी जाता हूँ और कपड़े धोकर लाता हूँ|” वह उसी समय गये और कपड़े सुखाकर ले आये|
सो सन्तों के वचनों पर शक़ नहीं करना चाहिए, उनके हर वचन में रम्ज़ होती है, जिसे कोई राज़ का महरम या वाक़िफ़ ही समझ सकता है|
तो भी अन्धकार तुझसे न छिपायेगा, रात तो दिन के समान
प्रकाश देगी; क्योंकि तेरे लिए अन्धियारा और उजियाला दोनों
एक समान है| (साम्ज़)