महालक्ष्मी व्रत – Mahalakshmi Vrat
यह व्रत राधा अष्टमी (भाद्रपद शुक्ल अष्टमी) से प्रारम्भ होकर आशिवन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक चलता है| इस दिन लक्ष्मी जी की पूजन का विधान है|
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विधि:
लक्ष्मी जी की मूर्ति को स्नान कराकर नए वस्त्र पहनाये जाते हैं| फिर लक्ष्मी जी को भोग लगाकर और आचमन कराकर फूल, दीप, धूप, चन्दन आदि से आरती करते हैं|
श्री लक्ष्मी जी की आरती:
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता |
तुमको निशदिन सेवत, हर विष्णु विधाता || जय
ब्रह्माणी रूद्राणी कमला, तू हि है जगमाता |
सूर्य चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता || जय
दुर्गा रूप निरंजन, सुख सम्पति दाता |
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि सिद्धि धन पाता || जय
तू ही है पाताल बसन्ती, तू ही है शुभ दाता |
कर्म प्रभाव प्रकाशक, भवनिधि से त्राता || जय
जिस घर थारो वासो, तेहि में गुण आता |
कर न सके सोई कर ले, मन नहिं धड़काता || जय
तुम बिन यज्ञ न होवे, वस्त्र न कोई पाता |
खान पान को वैभव, सब तुमसे आता || जय
शुभ गुण सुंदर मुक्त्ता, क्षीर निधि जाता |
रत्त्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नही पाता || जय
आरती लक्ष्मी जी की, जो कोई नर गाता |
उर आनन्द अति उपजे, पाप उतर जाता || जय
स्थिर चर जगत बचावे, शुभ कर्म नर लाता |
राम प्रताप मैया की शुभ दृष्टि चाहता || जय
प्रसाद को आरती के बाद वितरित करते हैं| रात्रि को चन्द्रमा के निकलने पर उसे अर्ध्य देकर स्वयं भोजन करें|
लाभ:
इस व्रत के करने से धन धान्य की वृद्धि होती है और सुख सम्पत्ति आती है|