श्री गीता जी की आरती – Shri Gita Ji Ki Aarti
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आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। भगवान को प्रसन्न करना। इसमें परमात्मा में लीन होकर भक्त अपने देव की सारी बलाए स्वयं पर ले लेता है और भगवान को स्वतन्त्र होने का अहसास कराता है।
आरती को नीराजन भी कहा जाता है। नीराजन का अर्थ है विशेष रूप से प्रकाशित करना। यानी कि देव पूजन से प्राप्त होने वाली सकारात्मक शक्ति हमारे मन को प्रकाशित कर दें। व्यक्तित्व को उज्जवल कर दें। बिना मंत्र के किए गए पूजन में भी आरती कर लेने से पूर्णता आ जाती है। आरती पूरे घर को प्रकाशमान कर देती है, जिससे कई नकारात्मक शक्तियां घर से दूर हो जाती हैं। जीवन में सुख-समृद्धि के द्वार खुलते हैं।
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श्री गीता जी की आरती इस प्रकार है:
करो आरती गीता जी की ||
जग की तारन हार त्रिवेणी,
स्वर्गधाम की सुगम नसेनी |
अपरम्पार शक्ति की देनी,
जय हो सदा पुनीता की ||
ज्ञानदीन की दिव्य-ज्योती मां,
सकल जगत की तुम विभूती मां |
महा निशातीत प्रभा पूर्णिमा,
प्रबल शक्ति भय भीता की || करो०
अर्जुन की तुम सदा दुलारी,
सखा कृष्ण की प्राण प्यारी |
षोडश कला पूर्ण विस्तारी,
छाया नम्र विनीता की || करो० ||
श्याम का हित करने वाली,
मन का सब मल हरने वाली |
नव उमंग नित भरने वाली,
परम प्रेरिका कान्हा की || करो० ||
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