श्री बद्रीनाथ जी की आरती – Shri Badrinath Ji Ki Aarti
जब भगवान विष्णु योगध्यान मुद्रा में तपस्या में लीन थे तो बहुत अधिक हिमपात होने लगा। भगवान विष्णु हिम में पूरी तरह डूब चुके थे। उनकी इस दशा को देख कर माता लक्ष्मी का हृदय द्रवित हो उठा और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो कर एक बेर (बदरी) के वृक्ष का रूप ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने लगीं। माता लक्ष्मीजी भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिम से बचाने की कठोर तपस्या में जुट गयीं । कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं। तो उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा कि हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा और क्योंकि तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है सो आज से मुझे बदरी के नाथ-बदरीनाथ के नाम से जाना जायेगा। इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बदरीनाथ पड़ा।
श्री बद्रीनाथ जी की आरती इस प्रकार है:
जय जय श्री बद्रीनाथ,
जयति योग ध्यानी || टेक ||
निर्गुण सगुण स्वरूप, मेधवर्ण अति अनूप |
सेवत चरण स्वरूप, ज्ञानी विज्ञानी | जय…
झलकत है शीश छत्र, छवि अनूप अति विचित्र |
बरनत पावन चरित्र, स्कुचत बरबानी | जय…
तिलक भाल अति विशाल,
गल में मणि मुक्त-माल |
प्रनत पल अति दयाल,
सेवक सुखदानी | जय….
कानन कुण्डल ललाम,
मूरति सुखमा की धाम |
सुमिरत हों सिद्धि काम,
कहत गुण बखानी | जय…
गावत गुण शंभु शेष,
इन्द्र चन्द्र अरु दिनेश |
विनवत श्यामा हमेश,
जोरी जुगल पानी | जय…