श्री अथ शिवजी की आरती – Shri Ath Shivji Ki Aarti
आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। भगवान को प्रसन्न करना। इसमें परमात्मा में लीन होकर भक्त अपने देव की सारी बलाए स्वयं पर ले लेता है और भगवान को स्वतन्त्र होने का अहसास कराता है।
आरती को नीराजन भी कहा जाता है। नीराजन का अर्थ है विशेष रूप से प्रकाशित करना। यानी कि देव पूजन से प्राप्त होने वाली सकारात्मक शक्ति हमारे मन को प्रकाशित कर दें। व्यक्तित्व को उज्जवल कर दें। बिना मंत्र के किए गए पूजन में भी आरती कर लेने से पूर्णता आ जाती है। आरती पूरे घर को प्रकाशमान कर देती है, जिससे कई नकारात्मक शक्तियां घर से दूर हो जाती हैं। जीवन में सुख-समृद्धि के द्वार खुलते हैं।
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श्री अथ शिवजी की आरती इस प्रकार है:
शीश गंग अर्द्धागड़ पार्वती,
सदा विराजत कैलाशी |
नंदी भृंगी नृत्य करत हैं,
धरत ध्यान सुर सुख रासी ||
शीतल मंद सुगंध पवन बहे,
वहाँ बैठे है शिव अविनासी |
करत गान गंधर्व सप्त स्वर,
राग रागिनी सब गासी ||
यक्षरक्ष भैरव जहं डोलत,
बोलत है बनके वासी |
कोयल शब्द सुनावत सुन्दर,
भंवर करत हैं गुंजासी ||
कल्पद्रुम अरु पारिजात,
तरु लाग रहे हैं लक्षासी |
कामधेनु कोटिक जहं डोलत,
करत फिरत है भिक्षासी ||
सूर्य कांत समपर्वत शोभित,
चंद्रकांत अवनी वासी |
छहों ऋतू नित फलत रहत हैं,
पुष्प चढ़त हैं वर्षासी ||
देव मुनिजन की भीड़ पड़त है,
निगम रहत जो नित गासी |
ब्रह्मा विष्णु जाको ध्यान धरत हैं,
कछु शिव हमको फरमासी ||
ऋद्धि-सिद्धि के दाता शंकर,
सदा अनंदित सुखरासी |
जिनको सुमरिन सेवा करते,
टूट जाय यम की फांसी ||
त्रिशूलधर को ध्यान निरन्तर,
मन लगाय कर जो गासी |
दूर करे विपता शिव तन की
जन्म-जन्म शिवपत पासी ||
कैलाशी काशी के वासी,
अविनासी मेरी सुध लीज्यो |
सेवक जान सदा चरनन को,
आपन जान दरश दीज्यो ||
तुम तो प्रभुजी सदा सयाने,
अवगुण मेरो सब ढकियो |
सब अपराध क्षमाकर शंकर,
किंकर की विनती सुनियो ||
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