ताड़ से गिरे खजूर में अटके – शिक्षाप्रद कथा
एक बार एक बगुले ने अपने बच्चों को गिद्धों से बचाने के लिए अपना घोंसला बदल दिया| उसने अपना नया घोंसला नदी के किनारे बनाया| अब वह स्वयं को सुरक्षित समझ रहा था, क्योंकि उसके नए घोंसले का पता गिद्धों या बहेलियों को नहीं था|
परंतु एक दिन वहां भी एक अनदेखी मुसीबत आ गई| जब वह अपने तथा अपने बच्चों के लिए मछलियां पकड़ने गया हुआ था तभी बाढ़ से उफनती नदी की एक लहर आई और उसके घोंसले को बहा कर ले गई, जब बगुला लौट कर आया तो देखा, उसका घोंसला और बच्चे लापता थे| बेचारा फूट-फूट कर रोने लगा| उसने सोचा – ‘मैंने गिद्धों ओअर बहेलियों से अपने बच्चों को बचाने के लिए एक नए स्थान पर अपना घोंसला बनाया| मगर मैं तो ताड़ से गिरकर खजूर पर अटक गया| काश वर्षा ऋतू में बाढ़ से उफनती नदी के किनारे घोंसला बनाने से पहले मैंने अच्छी प्रकार सोच-विचार किया होता!’
मगर जो हो गया, उसे बदला नहीं जा सकता| निराश बगुला कुछ देर वहीं खड़ा कलपता रहा, फिर वापस चला गया और कभी लौटकर नहीं आया|
शिक्षा: व्यक्ति शत्रु से बच सकता है, मृत्यु से नहीं|