शिव बने मछुए (भगवान शिव जी की कथाएँ) – शिक्षाप्रद कथा
एक बार भगवान शिव कैलाश पर्वत पर वेदों का रहस्य पार्वती को समझाने लगे| पार्वती बड़े ध्यान से सुन रही थीं, किंतु बीच-बीच में वे ऊंघने भी लगती थीं| जब बहुत प्रयत्न करने पर भी पार्वती अपने मन को एकाग्र न रख सकीं तो शिव क्रोध में आकर बोले – “पार्वती! यह क्या हो रहा है? मैं तुम्हें इतना गूढ़ रहस्य समझा रहा हूं और तुम हो कि झपकियां ले रही हो| तुममें तो इतनी ही बुद्धि है जितनी किसी मछुए की स्त्री में| जाओ, मृत्युलोक में किसी मछुए की स्त्री के रूप में जन्म लो|”
शिव के शाप से पार्वती उसी क्षण वहां से गायब हो गईं| बाद में शिव को बहुत पछतावा हुआ कि यह मैंने क्या किया? जिसका स्नेह मेरे लिए अगाध था, उसी को मैंने आवेश में आकर त्याग कर दिया?
शिव को मनोदशा उनके परम सेवक नंदी से छिपी न रह सकी| वह सोचने लगा – ‘स्वामी बहुत बेचैन हैं माता पार्वती के बिना| जब तक माता लौटेंगी नहीं, स्वामी को चैन नहीं पड़ेगा|
उधर पार्वती मृत्युलोक में पहुंचीं और एक शिशु-बालिका के रूप में पुन्नई वृक्ष के नीचे लेट गईं| थोड़ी ही देर में पुरवर कबीले के कुछ मछुए अपने सरदार के साथ वहां से गुजरे तो उनकी नजर उस शिशु-बालिका पर पड़ी| सरदार ने बालिका को उठाया और उसे भगवान का भेजा प्रसाद समझ कर अपने घर ले आया| उसने बालिका का नाम रखा-पार्वती| जब वह कुछ बड़ी हुई तो अपने पिता के साथ मछली पकड़ने जाने लगी| बड़ी होकर उसने नाव चलाना भी सीख लिया|
पार्वती अपूर्व सुंदरी थी| कबीले के कितने ही युवक उसके रूप की प्रशंसा करते नहीं अघाते थे| उनमें से कोई तो पार्वती के साथ विवाह के इच्छुक रहते थे, लेकिन पार्वती उनमें से किसी के साथ भी विवाह के लिए इच्छुक नहीं थी|
उधर, कैलाश पर्वत पर शिव को पार्वती का वियोग असहनीय हो रहा था| एक दिन उन्होंने अपने मन की व्यथा नंदी से कह डाली| बोले – “नंदी! मैं रात-दिन पार्वती के बिना बहुत बेचैन रहता हूं और उस घड़ी को कोसता रहता हूं जब मैंने गुस्से में आकर पार्वती को शाप दे दिया था| काश! उस समय मैंने धैर्य से काम लिया होता|”
नंदी ने हाथ जोड़कर कहा – “स्वामी! तब आप पृथ्वी पर जाकर उन्हें ले क्यों नहीं आते?”
“कैसे लाऊं नंदी? उसका विवाह तो किसी मछुए से होगा|” शिव के मुंह से कराह-सी निकली| शिव के मन की व्यथा जानकर नंदी विचार करने लगा कि मुझे कोई ऐसा जतन करना चाहिए जिससे स्वामी को मछुआ बनना पड़े| यह विचार करके नंदी ने एक बहुत बड़ी मछली का रूप धारण कर लिया और उस तट की ओर चल पड़ा जिधर परवर कबीले के मछुआरे रहते थे| वहां पहुंचकर मछली बने नंदी ने मछुआरों के बीच आतंक फैला दिया| मछुआरे जल में अपने जाल डालते तो मछली उनके जालों को काट डालती| उनकी नावें पलट देती|
मछली का आतंक जब ज्यादा ही बढ़ गया तो कबीले के मुखिया ने घोषणा कर दी – “जो भी आदमी इस मछली को पकड़ लाएगा, उसी के साथ मैं अपनी बेटी का व्याह कर दूंगा|”
अनेक युवकों ने उस मछली को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन असफल रहे| असहाय होकर मछुआ रे सरदार ने शिव की शरण ली – “हे दया के सागर, हे कैलाशपति! हमें इस मछली से छुटकारा दिलाओ|”
मुखिया की बेटी ने भी शिव की आराधना करते हुए कहा – “हे सदाशिव, हे प्रलयंकर! हमारी सहायता करो| अब तो हमें तुम्हारा ही आसरा है प्रभो!”
शिव ने उनकी पुकार सुनी| एक मछुए का वेष बनाकर वे मुखिया के पास पहुंचे| उन्होंने मुखिया से कहा – “मैं उस मछली को पकड़ने के लिए यहां आया हूं|”
मुखिया ने कहा – “नौजवान! अगर तुमने उसे पकड़ लिया तो हमारी जाति सदैव तुम्हारे गुण गाएगी|”
अगले दिन शिव एक बहुत बड़ा जाल लेकर सागर के जल में उतर पड़े| उन्होंने जाल फेंका तो मछली आकर उसमें फंस गई जो वास्तव में नंदी था| मछली बना नंदी सोचने लगा – ‘मेरा काम हो गया| अब स्वामी और माता का मिलन हो जाएगा|’
शिव मछली को किनारे लाए| मछुआरे उनकी ‘जय-जयकार’ करने लगे| सरदार बोला – “तुमने हमें उबार लिया युवक! हम किस तरह तुम्हारा आभार व्यक्त करें?”
फिर वचन के अनुसार मछुआरे सरदार ने बड़ी धूमधाम से अपनी पुत्री का विवाह उस युवक के साथ कर दिया| मछुआरे शिव और मछुआरिन पार्वती के विवाहोपरांत नंदी अपने असली रूप में प्रकट हो गया और उन्हें अपनी पीठ पर बैठाकर कैलास पर्वत ले आया| शिव की अंतर्वेदना दूर हो गई और पार्वती शाप से मुक्त हो गईं| जीवन चक्र पहले की ही तरह चलने लगा|
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