शहरी चूहा-गंवार चूहा – शिक्षाप्रद कथा
एक बार एक शहरी चूहा अपने गांव में रहने वाले अपने मित्र चूहे से भेंट करने गया| गांव का चूहा एक गरीब किसान के घर में रहता था| चूंकि शहर का चूहा गांव के चूहे का अतिथि था, इसलिए गांव के चूहे ने अपने मेहमान को स्वादिष्ट भोजन परोसने में कोई कसर न छोड़ी| लेकिन जो भोजन परोसा गया था, वह था रोटी का चूरा, बासी मांस तथा पनीर के बासी टुकड़े| भोजन आरंभ करने के बाद गांव के चूहे से यह बात छुपी नहीं रही कि शहरी अतिथि को भोजन पसंद नहीं आया| परंतु शिष्टाचार के नाते अतिथि ने भोजन की प्रशंसा की और भोजन के पश्चात बड़ी सावधानीपूर्वक बोला – “मित्र, तुम्हारे लिए एक आमंत्रण है| क्यों नहीं मेरे पास आकर शहर में रहते| देखो, तुम एक निर्धन किसान के घर में रहते हो| वहां तुम्हें कभी स्वादिष्ट भोजन नहीं प्राप्त हो सकता| वहां मैं एक धनवान व्यापारी के घर रहता हूं| शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो कि वहां दावत नहीं होती हो| नगर के बड़े-बड़े सेठ वहां भोज पर आते हैं| उनका यह हाल है कि वे खाते कम और बिखेरते ज्यादा हैं| जब पार्टी समाप्त हो जाती है तो वह बिखरा हुआ भोजन इतना होता है कि हम तुम और तुम्हारे किसान परिवार के सभी सदस्य भोजन कर लें, फिर भी बचा रहे|”
गांव का चूहा आंखें फाड़े शहरी चूहे की बातें सुनता रहा| वह चाहता था कि उसका शहरी मित्र अपने निमन्त्रण को दोबारा दोहराए| इसलिए उसने अपने शहरी मित्र से कहा – “मित्र, अगर तुम बुरा न मानो तो मैं तुम्हारे साथ ही तुम्हारे शहर चलना चाहूंगा| मैंने भी बहुत दिन से स्वादिष्ट भोजन नहीं खाया|”
“ओह मित्र! भला मुझे इससे अधिक क्या प्रसन्नता हो सकती है कि तुम मेरे साथ मेरे घर चलो| मैं तो कहूंगा कि अपना गांव हमेशा के लिए छोड़ कर शहर में ही बस जाओ|”
अपने शहरी मित्र के निमन्त्रण से उत्साहित होकर गांव के चूहे ने सोचा कि उसका शहरी मित्र सचमुच ठाट-बाट से रहता होगा| उन्होंने आपस में स्थायी रूप से गांव छोड़ने के विषय में विचार किया और दोनों मित्र शहर के लिए रवाना हो गए|
जब दोनों शहर पहुंचे तो आधी रात बीच चुकी थी| शहरी चूहा अपने मित्र को बड़ी शान से एक बड़ी-सी हवेली में ले गया और बड़े गर्व से बोला – “यही वह स्थान है, जहां मैं रहता हूं| यह हवेली इतनी बड़ी है कि तुम्हारा पूरा गांव इसमें रह सकता है| आओ, मैं तुम्हें दिखाऊं इस हवेली का नक्शा|” इतना कहकर शहरी चूहा अपने गांव के मित्र को हवेली के दर्शन करवाने लगा| उसने अपने मित्र को हवेली को रसोईघर, भोजन कक्ष तथा खाद्य भण्डार गृह आदि दिखाया| गांव का चूहा तो बेचारा आश्चर्य से आंखें फाड़े सब देख रहा था| आश्चर्य के मारे उसके मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे| उसकी दयनीय स्थिति देखकर शहरी चूहे ने कहा – “परेशान मत हो| लगता है तुम थक गए हो| थक तो मैं भी गया हूं| वह देखो, भोजन की मेज पर बचे-खुचे भोजन का कितना ढेर लगा है! आओ पहले भरपेट भोजन कर लें, फिर थोड़ा विश्राम करेंगे| आधी रात बीत चुकी है, हवेली के मेहमान तो चले गए हैं, परंतु कल देखना इस हवेली की गहमा-गहमी| ऐसी रंगीनियां बिखरेंगी जो तुमने आज तक नहीं देखी होंगी|”
इसके बाद दोनों मित्रों ने डट कर भोजन किया और बिल में जाकर गप्पें मारने के बाद सो गए|
दूसरे दिन गांव का चूहा जब सोकर उठा तो अपने आपको बड़ा तरोताजा अनुभव किया| उसकी घबराहट खत्म हो गई थी| अब वह पुराना गांव वाला चूहा नहीं रहा था| उसने अपने शहरी मित्र को खूब धन्यवाद दिया| दिन को दोनों ने हल्का नाश्ता किया| गांव के चूहे को तो ऐसा लग रहा था, जैसे वह बचपन से ही ऐश-ओ-इशरत की जिन्दगी जी रहा हो|
हवेली की रंगीन जिन्दगी तो शाम को ही आरंभ होती थी| पूरी हवेली में तेज रोशनी की जाती थी| मेहमान अपनी पत्नियों के साथ आते थे| उनके साथ उनके पुत्र-पुत्रियां भी आते थे| सभी सुन्दर कपड़ों से सजे हुए होते थे|
भोजन उनके सामने परोसा जाता था| सभी लोग आपस में बातचीत करते हुए भोजन का आनन्द लेते थे|
कुछ मेहमान ऐसे भी थे जो अपने साथ कुत्ते लाए थे| मगर कुत्तों को अपने मालिकों के ड्राइवर के साथ हवेली के बाहर ही रहना पड़ता था|
आधी रात के समय रात्रि भोज समाप्त होने के बाद सभी मेहमान एक-एक करके चले गए| उनके जाने के बाद भोजन कक्ष में पूरी तरह सन्नाटा छा गया| दोनों चूहे मित्र उछल कर भोजन की मेज पर चढ़ गए और बड़े मजे में चटखारे ले-ले कर बचे हुए अति स्वादिष्ट भोजन का आनन्द लेने में तल्लीन हो गए| तभी बंद दरवाजे के बाहर दो कुत्तों के भयंकर रूप से भौंकने की आवाज सुनाई दी| बेचारे गांव के चूहे को तो पसीना आ गया| तभी भोजन कक्ष का दरवाजा झटके से खुला और एक आदमी दो विशालकाय कुत्तों के साथ भीतर घुस आया| दो खूंखार कुत्तों को देखकर दोनों मित्र भोजन की मेज से कूद कर सोफों के नीचे घुस गए|
गांव वाले चूहे का दिल बुरी तरह धड़क रहा था| उसने अपने शहरी मित्र से कहा – “क्यों मित्र! क्या ऐसी ही जिन्दगी तुम व्यतीत कर रहे हो? और चाहते हो, मैं भी ऐसी ही जिन्दगी जीऊं! यहां तो बड़ा खतरा है| जिन्दगी दांव पर लगाकर यह सब ऐश और आराम हासिल करना कहां की बुद्धिमानी है| नहीं भाई नहीं, मैं अपने जीवन के इस प्रकार का समझौता नहीं कर सकता| मेरे लिए तो गांव की सूखी रोटी के टुकड़े, पनीर के टुकड़े तथा बासी मांस खतरे भरी ऐश-ओ-आराम की जिन्दगी से लाख दर्जे बेहतर है|” इतना कहकर गांव का चूहा रुका, फिर बोला – “मैं तो तुम्हें भी यही राय दूंगा कि तुम भी यह खतरे भरी शहरी जिन्दगी छोड़कर सदा के लिए मेरे साथ गांव में रहने रहने चलो|”
शिक्षा: निश्चिन्त होकर सूखी रोटी का टुकड़ा चिंताग्रस्त स्थिति में स्वादिष्ट पकवान खाने से कहीं हजार गुना अधिक बेहतर है|