स्वाधीनता का सुख – शिक्षाप्रद कथा
एक दिन एक ऊँट किसी प्रकार अपने मालिक से नकेल छुड़ाकर भाग खड़ा हुआ| वह भागा, भागा और सीधे पश्चिम भागता गया, वहाँ तक जहाँ रास्ते में एक नदी आ गयी| अब आगे भागने का रास्ता बंद हो गया| वह रास्ते में हरे-भरे खेत, पत्ते भरी झाड़ियाँ और खूब घने नीम के पेड़ छोड़ आया था| वह चाहता तो अपनी ऊँची गर्दन उठाकर पत्तियों से पेट भर लेता, लेकिन वह वहाँ से दूर भाग आया था|
सामने चौड़ी गहरी धारा बह रही थी| पीछे ऊँचा कगार खड़ा था और दोनों ओर दूर तक रेत-ही-रेत थी| कहीं हरियाली का नाम तक नहीं था| बेचारा ऊँट वहाँ आकर खड़ा हो गया और जब थक गया तो बैठ गया| वह डरके मारे बलबला भी नहीं सकता था| कहीं ऊँटवाला आकर उसे पकड़ न ले| उसे खूब भूख लगी थी, लेकिन पानी के सिवा वहाँ था भी क्या| वह लाचार था|
दो-तीन दिन बीत गये| भूख से ऊँट अधमरा हो गया| उसी समय एक कौआ आया| उसे ऊँट की दशा पर दया आ गयी| उसने कहा – ‘ऊँट भाई! मैं उड़ता हूँ, तुम मेरे पीछे चलो| मैं तुम्हें हरे खेत तक पहुँचा दूँगा|’
ऊँट बड़ा प्रसन्न हुआ| उसने कौए को धन्यवाद दिया| चलने को तैयार हो गया| उसी समय उसे याद आया और उसने पूछा – ‘भाई! उस खेत में कभी आदमी तो नहीं आता?’
कौआ हँस पड़ा| उसने कहा – ‘भला, हरा खेत आदमी के बिना कैसे होगा?’
‘तब तो मैं यहीं अच्छा हूँ|’ ऊँट ने खिन्न होकर कहा|
‘यहाँ तो तुम भूखे मर जाओगे|’ कौए ने समझाया|
‘लेकिन यहाँ रात-दिन नकेल डालकर कोई सताया तो नहीं करेगा| ऊँट ने संतोष एवं गर्व भरे स्वर में उत्तर दिया| सच तो है –
‘पराधीन सपनेहुँ सुखु नाहीं||’