समय पर कार्रवाई – शिक्षाप्रद कथा
एक बार एक कोयल और कबूतर आपस में बातें कर रहे थे| बहेलिए ने उन दोनों को एक ही पिंजरे में बंद कर रखा था|
कबूतर ने कहा – “तुम्हारे गाने से क्या लाभ है, अगर तुम्हें भी मेरी तरह बंधन में रहना है| हो सकता है कि तुम्हें अपने मधुर स्वर पर बहुत गर्व हो, मगर मेरा विचार है कि तुम्हारे मधुर स्वर की कोई कीमत नहीं है|”
“यह कहना गलत होगा, दोस्त! मेरे स्वर की मधुरता ने ही एक बार मेरी जान बचाई है|” कोयल ने कहा – “एक बार मेरे साथ एक दूसरा कबूतर रहता था| बहेलिए ने अपने कुछ अतिथियों के लिए उसे मारकर भोजन बनाने की योजना बना रखी थी| रात बहुत अंधेरी थी| बहेलिए की पत्नी आई और मुझे पकड़कर मारने के लिए ले गई| मगर वह जैसे ही मुझे मारना चाहती थी, मैं गाने लगी| और मेरे मित्र, मेरे गाने के कारण ही उसे अपनी गलती का पता चला| मेरी जान बच गई, वरना अंधेरा इतना था कि उसने मुझे कबूतर समझ कर मार दिया होता और मैं गाने के लिए जिन्दा नहीं रहती!”
बेचारा कबूतर यह सुनकर चुप हो गया|
शिक्षा: संकट में बुद्धि का ही सहारा होता है|