परी का वरदान – शिक्षाप्रद कथा
नन्दू बहुत ही अच्छा बच्चा था| वह नित्य अपने माता-पिता के चरण स्पर्श करता, ईश्वर की वन्दना करता, गुरुजनों का सम्मान करता था| हर काम को वक्त पर करता था| सभी उससे प्रेम करते थे|
नन्दू के पिता दिन भर फेरी लगा कर सब्जियां बेचा करते थे| नन्दू की एक छोटी-सी बहन थी| नन्दू की पढ़ाई में सहायता उसकी मां करती थी| पिता की गाढ़ी कमाई से घर खर्च और स्कूल के उसके खर्चे निकल आते थे| सब्जी बेचने जाने से पहले नन्दू नियम से सुबह सारी सब्जियां धोकर उन्हें ठेली में लगाता था| इसी बीच एक दुर्घटना घट गई, जिसने नन्दू की जिन्दगी में अंधेरा पैदा कर दिया| नन्दू के पिता बरसात में भीग कर बीमार हो गए और वह एक बार बिस्तर पर जो पड़े तो फिर उन्होंने उठने का नाम नहीं लिया| पिता की मृत्यु से जहां नन्दू के परिवार को मानसिक कष्ट हुआ, वहीं उसे आर्थिक तंगी ने भी आ घेरा| एक-एक पैसे के लिए उन्हें परेशान होना पड़ता था| मां का स्वास्थ्य पहले से ही खराब था| वह ठेली लगा नहीं सकती थी| नन्दू की उम्र कोई आठ साल की थी| इस काम को पूरी तरह से कर पाने में वह भी सक्षम नहीं था| पर नन्दू बहुत होशियार लड़का था| वह हर दम एक ही सोच में डूबा रहता कि वह परिवार का सहारा कैसे बने| चिन्ता के कारण वह भी सूखने लगा|
उसकी मां उसे रामायण, महाभारत के साथ दैविक चमत्कारों की कहानियां सुनाया करती थी| एक दिन नन्दू के मन में विचार आया क्यों न अपनी समस्या को लेकर देवता से प्रार्थना की जाए| उसकी पाठशाला के रास्ते में एक मन्दिर पड़ता था| नन्दू रोज पाठशाला जाते समय उस मन्दिर के दरवाजे पर खड़ा हो जाता और हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना करता, ‘हे भगवान, आप सबके दुखों को दूर करते हो, मैं छोटा सा बालक हूं, पूजा करना नहीं जानता पर मैं तुम से विनती करता हूं कि तुम मेरे दुखों को दूर करो|’ नन्दू को भगवान की प्रार्थना करते कई माह गुजर गए| पर नन्दू को न तो भगवान ने दर्शन ही दिए और न ही उसके दुख दूर हुए|
नन्दू यह सोचकर निराश होता कि शायद उसके पूजा करने में ही कोई दोष है वरना ईश्वर तो दयालु होते हैं, वह उसकी मदद जरूर करते| नन्दू को ईश्वर पर अटूट श्रद्धा थी| वह प्रतिदिन मन्दिर जाता रहा| वह मन्दिर एक देवी मां का था| आखिर देवी इस नन्हे भक्त की भक्ति से प्रसन्न हो गईं| एक रात नन्दू अपने बिस्तर पर गहरी नींद से सोया था| तभी उसे लगा, आकाश से एक तीव्र रोशनी उतर रही है| एक ही क्षण में उसका सारा कमरा उज्जवल प्रकाश से भर गया| कुछ ही समय में उस प्रकाश से एक नन्ही-सी परी निकली| उस परी का रूप वैसा ही था जैसा वह अक्सर किताबों में पढ़ा करता था| उसके हाथ में एक छड़ी थी|
नन्दू उस परी को गौर से देखकर बुदबुदाया, “यह सपना है या सच्चाई!”
परी मुस्करा कर बोली, “यह सच है नन्दू|”
नन्दू ने बड़ी व्याकुलता और प्रसन्नता से पूछा, “तो क्या तुम परी हो?”
“हां” परी ने मुस्कराते हुए कहा|
“तुम यहां पर….|” नन्दू अपनी बात पूरी न कर सका|
परी खिलखिलाकर बोली, “नन्दू, मुझे देवी मां ने तुम्हारे पास भेजा है|”
“क्या? देवी मां ने….” अब की बार नन्दू खुशी से चीख उठा|
“हां, नन्दू बोलो तुम्हें क्या चाहिए?”
नन्दू बोला, “परी, अगर तुम सचमुच देवी की दूत हो तो मेरी मां को स्वस्थ कर दो|”
परी मुस्कराकर बोली, “ठीक है नन्दू अब सुबह जब तुम्हारी मां सोकर उठेगी तो वह बिल्कुल स्वस्थ और प्रसन्नचित होगी| पर नन्दू मैं तुम्हें वरदान देने आई थी, तुमने अपने लिए तो कुछ मांगा ही नहीं|”
नन्दू सहज भाव से बोला, “परी, अगर मेरी मां ठीक होगी तो वह मेरी देखभाल स्वयं कर लेगी| फिर मां-बाप की सेवा करनी चाहिए, बच्चों पर सबसे पहला अधिकार मां का होता है| इसलिए मैंने मां के स्वस्थ होने का वरदान तुमसे मांग लिया|”
पर बोली, “नन्दू मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं, तुम मुझसे एक वरदान और मांग लो|”
नन्दू बोला, “परी, मुझे सद्बुद्धि दो ताकि मैं बड़ा होकर नेक, ईमानदारी और सच्चाई के रास्ते पर चल सकूं|”
परी बहुत प्रसन्न हुई और बोली, “ऐसा ही होगा, नन्दू यह अंगूठी तुम अपने पास रख लो, इस अंगूठी को पहनकर जो इच्छा करोगे वह पूरी हो जाएगी| पर जिस दिन तुमने इसका गलत कामों के लिए प्रयोग किया, इसकी शक्ति उसी दिन खत्म हो जाएगी|” यह कहकर जाने से पूर्व परी ने नन्दू से कहा, “देखो नन्दू इसका जिक्र तुम किसी से न करना|” इतना कहने के बाद पहले परी विलीन हुई, फिर प्रकाश में नन्दू ने देखा उसके हाथों में अंगूठी थी|
वह इस बात को मां से कहना चाहता था, पर परी की बात याद आते ही वह शान्त हो गया| सुबह मां पूर्ण स्वस्थ नजर आई| उस दिन से नन्दू और उसका परिवार सुखी परिवार हो गया|
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि बड़ों का आदर करते हुए कर्म पर विश्वास करने वाले के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है|