श्यामदस बहुत ही निर्धन व्यक्ति था| एक बार उसे स्वप्न आया की उसने अपने मित्र रामदास से सौ रुपये उधार लिए हैं| प्रात: जब वह उठा तो उसे इस स्वप्न का फल जानने की इच्छा हुई, उसने कई लोगों से स्वप्न की चर्चा कि|
गुरू धौम्य का बहुत बडा आश्रम था। आश्रम में कई शिष्य थे। उनमें अरूणि गुरू का सबसे प्रिय शिष्य था। आश्रम के पास खेती की बहुत ज़मीन थी। खेतों में फसल लहलहा रही थी। एक दिन शाम को एकाएक घनघोर घटा घिर आई और थोडी देर में तेज वर्षा होने लगी। उस समय ज्यादातर शिष्य उठ कर चले गए थे। अरूणि गुरूदेव के पास बैठा था।
एक स्त्री थी| उसे बहुत गुस्सा आता था| जरा-सी कोई बात होती कि उसका पारा चढ़ जाता और वह कहनी-अनकहनी सब तरह की बातें कह डालती|
बादशाह अकबर ने दरबार में प्रस्ताव रखा कि दो माह को एक माह में बदल दिया जाए| दरबारियों से इस पर राय मांगी गई तो सभी ने बादशाह की चापलूसी करते हुए इस प्रस्ताव का समर्थन किया किंतु बीरबल खामोश था|
एक व्यक्ति चाहकर भी अपने दुर्गुणों पर काबू नहीं कर पा रहा था. एक बार उसके गाँव में संत फरीद आये.
किसी जमाने में एक राजा था| वह बड़ा नेक था| अपनी प्रजा की भलाई के लिए प्रयत्न करता रहता था| उसने अपने राज्य में घोषणा करा दी थी कि शाम तक बाजार में किसी की कोई चीज न बचे, अगर बचेगी तो वह स्वयं उसे खरीद लेगा, इसलिए शाम को जो भी चीज बच जाती, वह उसे खरीद लेता|
बादशाह अकबर ने बीरबल से कहा – “बीरबल, किसी ऐसे व्यक्ति को मेरे सामने पेश करो जो सबसे अधिक बुद्धिमान हो?”
एक बार की बात है| एक माली ने एक बगीचे में गुलाब के फूल लगाए| फूल देखकर वहाँ एक बुलबुल आने लगी, वो उन्हें नोच लेती थी, माली ने बार-बार उसे भगाया, परंतु वह बार-बार आकर फूल नोच जाती थी|
महात्मा बुद्ध किसी उपवन में विश्राम कर रहे थे। तभी बच्चों का एक झुंड आया और पेड़ पर पत्थर मारकर आम गिराने लगा।
एक राजा था, उसका नाम था श्रेणिक| उसकी चेतना नाम की एक रानी थी, एक बार वे दोनों भगवान महावीर के दर्शन करके लौट रहे थे तो रानी ने देखा, भंयकर शीत में एक मुनि तप में लीन हैं| उनकी कठोर साधना के लिए उसने मन-ही-मन उन्हें बारम्बार प्रणाम किया|
एक चोर ने राजा के माल में चोरी की| राजा के सिपाहियों को पता चला तो उन्होंने देखा उसके पदचिन्हों का पीछा किया| चोर के पदचिन्हों को देखते-देखते वे नगर से बाहर आ गये| पास में एक गांव था| उन्होंने चोर के पदचिन्ह गाँव की ओर जाते देखे| सिपाहियों ने गाँव के बाहर चक्कर लगाकर देखा कि चोर गाँव से बाहर नहीं गया, गाँव में ही है|
बाद लगभग ढाई हज़ार वर्ष पहले की है| उस समय देश के कई हिस्सों में अकाल-दुर्भिक्ष की स्थिति पैदा हो गई| वर्षा न होने से सूखा पड़ गया| भूख के कारण गरीब जनता त्राहि-त्राहि कर उठी|
दिल्ली का एक बादशाह था| जनता के सुख-दुःख का वह सदा ख्याल रखता था| प्रजा के सुख-दुःख का ख्याल रखने के कारण ही उसे एक दिन अधिक रात बीतने पर भी नींद नहीं आई|
विश्वामित्र अत्यंत क्रोधी स्वभाव के थे। उन्हें इस बात का दुख सताता रहता था कि ऋषि वशिष्ठ उन्हें ब्रह्मार्षि नहीं मानते।
बात उस समय की है, जब भारत स्वतंत्र नहीं हुआ था| एक बालक था| उसके अंदर देश-भक्ति कूट-कूटकर भरी थी| वह उन लोगों की बराबर मदद करता था, जो आजादी के दीवाने थे और गुलामी की जंजीरें तोड़ने के लिए जी-जान से जुटे थे|
एक सेठ की हवेली थी| बगल में एक गरीब का छोटा-सा घर था| दोनों घरों की स्त्रियाँ जब आपस में मिलती थीं, तब एक-दूसरे से पूछती थीं कि आज तुमने क्या रसोई बनायी?
एक दिन राजा जनक ने महर्षि याज्ञवल्क्य से पूछा, ‘महात्मन्! बताइए कि एक व्यक्ति किस ज्योति से देखता है और काम लेता है?’ याज्ञवल्क्य ने कहा, ‘यह तो बिल्कुल बच्चों जैसी बात पूछी आपने महाराज।
बचपन में गांधीजी को लोग ‘मोनिया’ कहकर पुकारते थे| प्यार से ‘मोहन’ की जगह यह नाम लेते थे| मोनिया का शरीर दुबला था| उसे पेड़ों पर चढ़ना बहुत अच्छा लगता था| मंदिर के आंगन में पपीते और अमरूद के पेड़ थे| मोनिया उन पर चढ़कर पके फल तोड़ लाता|
एक बार नारदजी एक पर्वत से गुजर रहे थे। अचानक उन्होंने देखा कि एक विशाल वटवृक्ष के नीचे एक तपस्वी तप कर रहा है। उनके दिव्य प्रभाव से वह जाग गया और उसने उन्हें प्रणाम करके पूछा कि उसे प्रभु के दर्शन कब होंगे।
मिथिला नगरी के राजा जनक थे|
सेठ धर्मदास धार्मिक प्रवृति का व्यक्ति था| बड़े-बड़े महात्मा और ज्ञानी पुरषों के संपर्क में रहने के कारण एक महात्मा ने सेठ से कहा, ‘सेठजी आप दानी होने के साथ-साथ काफ़ी धनवान भी है| अतः आप एक मंदिर बनवा दे, जिससे आपको पुण्य लाभ मिलेगा|’
एक राजा और नगर सेठ में गहरी मित्रता थी। वे रोज एक दूसरे से मिले बिना नहीं रह पाते थे। नगर सेठ चंदन की लकड़ी का व्यापार करता था।
किसी नगर में ब्राह्मणों के चार लड़के रहते थे| वे चारों ही बड़े गरीब थे| उनमें आपस में गहरी मित्रता थी| अपनी गरीबी दूर करने के लिए उन्होंने बहुत-से उपाय किए, लेकिन उनका कष्ट दूर नहीं हुआ| आखिर परेशान होकर उन चारों ने निश्चय किया कि और कहीं जाकर उन्हें धनोपार्जन का प्रयत्न करना चाहिए|
सुंदरवन के एक ऊँट और सियार में घनिष्ठ मित्रता थी|
एक बुढ़िया बड़ी सी गठरी लिए चली जा रही थी। चलते-चलते वह थक गई थी। तभी उसने देखा कि एक घुड़सवार चला आ रहा है। उसे देख बुढ़िया ने आवाज दी, ‘अरे बेटा, एक बात तो सुन।’ घुड़सवार रुक गया।
एक फकीर था | वह जंगल में घास-फूस की कुटिया बनाकर रहता था| उसे एक विद्या आती थी, वह पीतल को सोना बना देता था, लेकिन इस विद्या का प्रयोग वह तभी करता था, जब उसे उसकी बहुत जरूरत होती थी और वह भी गरीबों के फायदे के लिए|
एक राजमहल के पिछवाड़े में एक बहुत बड़ा सरोवर था| उसमे अनेक सुनहरे हंस रहते थे| प्रत्येक हंस छह मास बाद सोने का एक पँख सरोवर के तट पर छोड़ देता था, जिसे राजा के सेवक उठा ले जाते थे|
तीनों लोकों में राधा की स्तुति से देवर्षि नारद खीझ गए थे। उनकी शिकायत थी कि वह तो कृष्ण से अथाह प्रेम करते हैं फिर उनका नाम कोई क्यों नहीं लेता, हर भक्त ‘राधे-राधे’ क्यों करता रहता है। वह अपनी यह व्यथा लेकर श्रीकृष्ण के पास पहुंचे।
यह उन दिनों की बात है, जब चंपारन में किसानों का सत्याग्रह चल रहा था| गांधीजी की उस सेना में सभी प्रकार के सैनिक थे| जिसमें आत्मिक बल था, वे उस लड़ाई में शामिल हो सकते थे| सत्याग्रहियों में कुष्ठ रोग से पीड़ित एक खेतिहर मजदूर भी था उसके शरीर में घाव थे| वह उन पर कपड़ा लपेटकर चलता था| एक दिन शाम को सत्याग्रही अपनी छावनी को लौट रहे थे, पर उस बेचारे कुष्ठी से चला नहीं जा रहा था| उसके पैरों पर बंधे कपड़े कहीं गिर गए थे | घावों से खून बह रहा था| सब लोग आश्रम में पहुंच गए| बस एक वही व्यक्ति रह गया|
गोदावरी नदी के किनारे पर बसे घने जंगल में एक बहेलिए ने अपना जाल फैलाकर उसके चारों ओर चावल बिखेर दिए तथा स्वयं चुपचाप छिपकर बैठ गया|