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शिक्षाप्रद कथाएँ (1569)

एक दिन भगवान बुद्ध कहीं जा रहे थे| उनका शिष्य आनंद भी साथ था| वे पैदल चलते-चलते बहुत दूर निकल गए| ज्यादा चलने के कारण वे थक गए थे| रास्ते में आराम करने के लिए वे एक पेड़ के नीचे रुक गए|

‘मुनिप्रवर! आप तो पृथ्वी पर निवास करने वाले श्रेष्ठ ऋषि प्रतीत होते हैं|रसातल में आपके पधारने का क्या कोई विशेष प्रयोजन है?’-महातेजस्वी प्रह्वादने अमित तेजस्वी च्यवन ऋषि का यथायोग्य पूजनकर विनम्रतापूर्वक प्रश्न किया|

एक महात्माजी गांव से गुजर रहे थे। गांव-गांव घूमकर वे अपने शिष्यों के साथ प्रेम और भाईचारे का उपदेश दे रहे थे। इसी प्रकार भ्रमण करते हुए वे ऐसे गांव में पहुंचे, जहां हिंदू-मुस्लिम विवाद चल रहा था। महात्माजी के आने से पूर्व गांव के दोनों समुदायों में खासी मारपीट हो चुकी थी।

यदि आपका मन स्वस्थ है, शक्तिशाली है तो आप अपनी शारीरिक अक्षमता के होते हुए भी कमाल कर सकते हैं| भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी चंद्रशेखर का हाथ पोलियों से पीड़ित हो गया| उसने अपनी हाथ के अक्षमता के बावजूद भी हार नहीं मानी| उसने उसी हाथ से गेंद फेंकने का ऐसा अभ्यास किया कि वह संसार में कुछ श्रेष्ठ फिरकीबाजों, स्पिन गेंद फेंकने वालों में श्रेष्ठतम गिना गया|

एक बार भगवान बुद्ध अपना चातुर्मास पाटलिपुत्र में कर रहे थे| उनका उपदेश सुनने के लिए बहुत-से लोग आते थे|

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी का चन्द्र अपनी ज्योत्स्ना से धरती को शीतलता प्रदान कर रहा था| वह विणा लेकर भक्ति गीत गाते हुए एकान्त अरण्य में स्थित मन्दिर की ओर चल पड़ा|

राजस्थान में राणा प्रताप के अतिरिक्त रघुपति सिंह ही एकमात्र ऐसा सैनिक था जो अकबर के सामने घुटने टेकने के लिए तैयार नहीं था। अपने परिवार से दूर वह राणा प्रताप की सहायता करता रहता था। उसके घर पर पहरा बैठा दिया गया, लेकिन वह घर आता ही नहीं था। उसके गुप्तचर ही उसे घर का समाचार दे दिया करते।

एक दिन एक चोर किसी महिला के कमरे में घुस गया| महिला अकेली थी, चोर ने छुरा दिखाकर कहा – “अगर तू शोर मचाएगी तो मैं तुझे मार डालूंगा|”

एक खरगोश बिल्व (बेल) वृक्ष के नीचे विश्राम की मुद्रा में अधलेटा सोच रहा था, ‘यदि धरती के टूटकर दो टुकड़े हो जाएँ तो क्या होगा?’

प्राचीनकाल में एक जंगल में दो वृक्ष मिलजुल कर रहते थे|

अत्रिवंश में उत्पन्न एक मुनि थे, जो संयमन नाम से विख्यात थे| उनकी वेदाभ्यास में बड़ी रूचि थी| वे प्रातः, मध्यान्ह तथा सांय-त्रिकाल स्नान-संध्या करते हुए तपस्या करते थे|

एक वृद्ध व्यक्ति युवकों को पेड़ पर चढ़ने व उतरने की कला सिखाया करता था। वह ऊंचे से ऊंचे पेड़ों पर चढ़ना-उतरना इस हुनर के साथ सिखाता था कि युवक इस कार्य में अति निपुण हो जाते थे। यह कला उन्हें खेती में काम आती थी और अनेक बार जंगली जानवरों से आत्मरक्षार्थ भी। वृद्ध इस कला को गहराई से जानता था।

प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री एवं न्यायशास्त्री सर डॉ० आशुतोष मुखर्जी की 125वी जयंती जुलाई, 1989 में सारे देश में मनाई गई थी| डॉ० आशुतोष कितने अधिक साहसी, दृढ़ निश्चयी और राष्ट्रवादी भावना के प्रतीक थे, यह तथ्य इस घटना से प्रमाणित होता है- एक बार अदालत में देर हो जाने पर सांझ के समय डॉ० आशुतोष रेल द्वारा यात्रा कर रहे थे| वह बहुत अधिक थके हुए थे|

अरब देश की बात है| एक राजा था| उसके बड़े-ठाठ-बाट थे| उसके पास किसी चीज की कमी न थी|

बात बहुत पुरानी है| एक पंडितजी अपने शिष्य के साथ जंगल से होकर जा रहे थे| तभी एकाएक उनकी नज़र डाकुओं पर पड़ी|

काशीपुर में बड़ी संख्या में लोग मेढ़ों की लड़ाई देखने जमा हुए| तभी एक सन्यासी भी वहाँ आ पहुँचा| उसने एक आदमी से पूछा, क्यों भाई, यहाँ क्या हो रहा है?’

पूर्वकल्प में आरुणि नाम से विख्यात एक महान् तपस्वी ब्राह्मण थे| वे किसी उद्देश्य से तप करने के लिये वन में गये और वहाँ उपवासपूर्वक तपस्या करने लगे| उन्होंने देविका नदी के सुन्दर तटपर अपना आश्रम बनाया था|

एक अलमस्त साधु कुछ जिज्ञासुओं के मध्य बैठा बातें कर रहा था। जिज्ञासु उससे अपने प्रश्नों का समाधान प्राप्त कर रहे थे और साधु धर्यपूर्वक उनके प्रश्नों का उत्तर दे रहे थे। प्रश्न करने वालों में कुछ उद्दंड लोग भी बैठे थे। इनमें से एक ने पूछा- बाबा! यह बताओ कि कुछ लोग डंडा लेकर आपको मारने आएं तो आप क्या करोगे? प्रश्न सुनकर साधु बहुत हंसे, फिर बोले- इसका उपाय तो बहुत ही सरल है।

पहले विश्व-महायुद्ध के दिनों की बात है| लंबी लड़ाई से इंग्लैंड की जनता क्लांत हो चुकी थी| थकी हुई जानता वर्षों से जूझते देश के सिपाहियों ने नए उत्साह की प्रेरणा देने के लिए इंग्लैंड के तत्कालीन बादशाह पंचम जार्ज ने प्रमुख मोर्चों पर सैनिक टुकडियों तथा फौजी छावनियों में एकत्र देश के सिपाहियों के समक्ष जाने का कार्यक्रम बनाया|

किसी नगर में एक सेठ रहता था| उसके पास अपार धन-संपत्ति थी, विशाल हवेली थी, नौकर-चाकर थे, सब तरह का आराम था, फिर भी उसका मन अशांत रहता था| हर घड़ी उसे कोई-न-कोई चिंता घेरे रहती थी| सेठ उदास रहता|

एक बार ढोलकवादक रमैया और उसका पुत्र कानू कांचिपुरि एक विवाह समारोह में गए| समारोह समाप्त होने पर दोनों को खूब धन आभूषण पुरस्कार स्वरुप मिले| वे खुशी-खुशी अपने घर की ओर लौट चले|

पहले कांचीपुर में चोल नाम के चक्रवर्ती राजा हो गये हैं| राजा चोल के राज्य में कोई भी मनुष्य दरिद्र, दुःखी, पापी तथा रोगी नहीं था|

यासिन मुहम्मद एक छोटे-से गांव में चाय की दुकान चलाता था। वह महत्वाकांक्षी व कर्मठ व्यक्ति था। रात-दिन दुकान पर लगा रहता। जल्दी ही उसने कुछ पैसे जमा कर लिए। एक दिन उसकी दुकान पर ग्राम विकास के निदेशक अख्तर हमीद खां आए।

किसी गांव में एक ब्राह्मण रहता था| उसके पास खेती-बाड़ी के लिए जमीन थी, लेकिन उस जमीन पर फसल अच्छी नहीं होती थी| बेचारा परेशान था|

प्राचीन कल की बात है, बहूदक नामक तीर्थ में नन्दभद्र नाम के एक वैश्य रहते थे| वे वर्णाश्रम-धर्म का पालन करने वाले सदाचारी पुरुष थे| उनकी धर्मपत्नी का नाम कनका था|

दो संन्यासी थे। एक वृद्ध और एक युवा। दोनों साथ रहते थे। एक दिन महीनों बाद वे अपने मूल स्थान पर पहुंचे। जो एक साधारण-सी झोपड़ी थी। किंतु जब दोनों झोपड़ी में पहुंचे तो देखा कि वह छप्पर भी आंधी और हवा ने उड़ाकर न जाने कहां पटक दिया।

भूदान- यज्ञ के दिनों की बात है| विनोबाजी की पद-यात्रा उत्तर प्रदेश में चल रही थी| उनके साथ बहुत थोड़े लोग थे| मीराबहन के आश्रम ‘पशुलोक’ से हम हरिद्वार आ रहे थे| विनोबाजी की कमर और पैर में चोट लगी थी, उन्हें कुर्सी पर ले जाया जाता था, पर बीच-बीच में वे कुर्सी से उतरकर पैदल चलने लगते थे|

एक बार की बात है| एक लड़का था| अक्ल के मामले में थोड़ा-सा कमजोर| एक दिन खेत से लौटते समय उसने एक आदमी को एक गधी लेकर जाते हुए देखा| लड़के को गधी बहुत अच्छी लगी| उसने मालिक से पूछा, “तुम इस गधी को कितने में बेचोगे? मै इसे खरीदना चाहता हूं|”

जहांगीर के राज्य में चंदूशाह नाम का एक सेठ था। उसने सिख गुरु अर्जुन देव के समक्ष प्रस्ताव रखा कि वे अपने पुत्र हरगोविंद का विवाह उसकी पुत्री के साथ कर दें। गुरु अर्जुन देव ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। इस पर वह नाराज हो गया और बदले का अवसर खोजने लगा।

मुस्लिम संतों में एक बहुत बड़ी संत हुई हैं राबिया| उनमें ईश्वर-भक्ति कूट-कूटकर भरी थी, वे हर घड़ी प्रभु के चरणों में लौ लगाए रहती थीं| सबको उसी का बंदा मानकर उन्हें प्यार करती थीं और जी-जान से उनकी सेवा करती थीं|