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शिक्षाप्रद कथाएँ (1569)

बहुत समय पहले गंगा नदी के तट पर एक आश्रम में अनेक ऋषि-मुनि रहते थे| उनके गुरु बड़े ही विद्वान और सिद्ध पुरुष थे| वे अपनी शक्ति से तरह-तरह के आश्चर्यजनक चमत्कार कर सकते थे| 

एक बार राजा पाण्डु अपनी दोनों पत्नियों – कुन्ती तथा माद्री – के साथ आखेट के लिये वन में गये। वहाँ उन्हें एक मृग का मैथुनरत जोड़ा दृष्टिगत हुआ। पाण्डु ने तत्काल अपने बाण से उस मृग को घायल कर दिया। मरते हुये मृग ने पाण्डु को शाप दिया, “राजन! तुम्हारे समान क्रूर पुरुष इस संसार में कोई भी नहीं होगा। तूने मुझे मैथुन के समय बाण मारा है अतः जब कभी भी तू मैथुनरत होगा तेरी मृत्यु हो जायेगी।”

एक बार की बात है एक जिज्ञासु साधक सच्चे आनंद की तलाश में एक महात्मा के पास गया| महात्मा जी से उसने बहुत आग्रह से प्रार्थना की कि वह सच्चे आनंद पर प्रकाश डालें|

बहुत समय की बात है, एक घने जंगल में शेर और शेरनी का एक जोड़ा रहता था| कुछ दिनों बाद शेरनी को दो बच्चे हुए| बच्चों को पाकर दोनों बहुत खुश हुए|

महाभारत-युद्ध के दिनों में श्रीकृष्ण एवं श्री बलराम के यादव कुल की प्रशंसा इन शब्दों में की थी वे ‘वृद्धों’ की आज्ञा में चलते हैं|

धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर के लालन पालन का भार भीष्म के ऊपर था। तीनों पुत्र बड़े होने पर विद्या पढ़ने भेजे गये। धृतराष्ट्र बल विद्या में, पाण्डु धनुर्विद्या में तथा विदुर धर्म और नीति में निपुण हुये। युवा होने पर धृतराष्ट्र अन्धे होने के कारण राज्य के उत्तराधिकारी न बन सके। विदुर दासीपुत्र थे इसलिये पाण्डु को ही हस्तिनापुर का राजा घोषित किया गया। भीष्म ने धृतराष्ट्र का विवाह गांधार की राजकुमारी गांधारी से कर दिया। गांधारी को जब ज्ञात हुआ कि उसका पति अन्धा है तो उसने स्वयं अपनी आँखों पर पट्टी बाँध ली।

एक समय की बात है बाल गंगाधर तिलक छात्रावास की छ्त पर बैठे हुए अपने साथियों के साथ गपशप कर रहे थे| एक के बाद एक सभी साथियों के सामने यह समस्या आयी कि अगर अचानक नीचे किसी पर मुसीबत आ जाए तो उसको बचाने के लिए जल्दी से जल्दी नीचे कौन कैसे जाएगा?

बहुत समय पहले किसी नगर में चार मित्र रहते थे| उनमें गहरी दोस्ती थी| वे हमेशा साथ-साथ रहते थे| उनमें से तीन व्यक्ति बड़े ही विद्वान थे| उन्होंने इतना कुछ सीखा-पढ़ा था कि आगे और सिखने के लिए कुछ नहीं बचा| परन्तु इतने पढ़े-लिखे होने पर भी उनमें सामान्य बुद्धि बिलकुल नहीं थी| इन तीनों के विपरीत, चौथा इतना पढ़ा-लिखा तो नहीं था, पर उसमें अक्ल और समझ कूट-कूटकर भरी थी|

प्रातःकाल जब राम और लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिलापुरी के वन उपवन आदि देखने के लिये निकले तो उन्होंने एक उपवन में एक निर्जन स्थान देखा। राम बोले, “भगवन्! यह स्थान देखने में तो आश्रम जैसा दिखाई देता है किन्तु क्या कारण है कि यहाँ कोई ऋषि या मुनि दिखाई नहीं देते?”

किसी वन में भासुरक नाम का एक सिंह प्रतिदिन अनेक जीवों को मारा करता था| एक दिन जंगल के सभी जीव मिलकर उसके पास पहुँचे और उससे निवेदन किया- “वनराज! प्रतिदिन अनेक प्राणियों को मारने से क्या लाभ? आपका आहार तो एक जीव से पूर्ण हो जाता है, इसलिए क्यों न हम परस्पर कोई ऐसी प्रतिज्ञा कर लें कि आपको यहाँ बैठे-बैठे ही आपका भोजन मिल जाए|

बहुत समय पहले एक ब्राह्मण रहता था| वह भीख मांगकर गुजर-बसर करता था| कभी-कभी तो उसे कई दिन भूखा रहना पड़ता| कभी मुश्किल से एक समय का खाना जुटा पाता| मगर एक दिन उसकी किस्मत चमकी| कहीं से उसे एक हंडी भर आटा मिल गया| इतना आटा पाकर ब्राह्मण खुशी से फूला न समाया| वह हंडी लेकर घर पहुंचा और उसे अपने बिस्तर के पास लटकाकर आराम से लेट गया|

सत्यवती के चित्रांगद और विचित्रवीर्य नामक दो पुत्र हुये। शान्तनु का स्वर्गवास चित्रांगद और विचित्रवीर्य के बाल्यकाल में ही हो गया था इसलिये उनका पालन पोषण भीष्म ने किया।

एक दर्जी था| जिसका नाम दया सागर था| नाम के अनुसार ही उसमें वैसे गुण भी थे| वह बहुत दयालु स्वभाव का परिश्रमी व्यक्ति था| जब वह अपनी दुकान पर कपड़े सिलता रहता था तो उसकी दुकान पर एक हाथी प्रतिदिन आकर खड़ा हो जाता था दर्जी रोज हाथी को कुछ न कुछ खाने को देता था| परिणामस्वरुप हाथी दर्जी को रोज सैर कराने ले जाता था| हाथी नियमित रुप से प्रतिदिन आने लगा था|

एक कबूतरों का एक झुण्ड खाने की तलाश में बड़ी दूर उड़ता चला गया| मीलों उड़ने के बाद भी उन्हें कहीं अन्न का दाना नहीं आया| यों ही भूखे-प्यासे एक वे घने जंगल के ऊपर से गुजर रहे थे| एक नन्हा कबूतर बहुत थक गया था| उसने झुण्ड के सरदार से विनय की, “महाराज, हम कहीं थोड़ी देर के लिए सुस्ता लें|”

एक गाँव में बिरजू नामक किसान रहता था बिरजू के चार बेटे थे| बिरजू बहुत मेहनती और दूरदर्शी स्वभाव का था जबकि उसके बेटे निकम्मे कामचोर और आलसी स्वभाव के थे|

“जब महाराज सगर को बहुत दिनों तक अपने पुत्रों की सूचना नहीं मिली तो उन्होंने अपने तेजस्वी पौत्र अंशुमान को अपने पुत्रों तथा घोड़े का पता लगाने के लिये आदेश दिया। वीर अंशुमान शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित होकर उसी मार्ग से पाताल की ओर चल पड़ा जिसे उसके चाचाओं ने बनाया था।

एक छोटे से गाँव में एक ब्राह्मण और उसकी पत्नी रहते थे| उन दोनों के कोई संतान नहीं थी इस कारण वे बहुत दुखी रहते थे| वे हर रोज बच्चे के लिए भगवान से प्रार्थना करते, पूजा-अर्चना करते और मनौतियां मनाते रहते| कुछ समय बाद उनकी मनोकामना पूरी हो गई| एक दिन उनके घर में एक बच्चे ने जन्म लिया| पर वह बच्चा, एक सांप था|

एक बालक सिद्धार्थ प्रातःकाल घूमने के लिए बगीचे में गया| बगीचे में बहुत से पक्षी उछल-कूद कर रहे थे|

ऋषि विश्वामित्र ने इस प्रकार कथा सुनाना आरम्भ किया, “पर्वतराज हिमालय की अत्यंत रूपवती, लावण्यमयी एवं सर्वगुण सम्पन्न दो कन्याएँ थीं। सुमेरु पर्वत की पुत्री मैना इन कन्याओं की माता थीं। हिमालय की बड़ी पुत्री का नाम गंगा तथा छोटी पुत्री का नाम उमा था। गंगा अत्यन्त प्रभावशाली और असाधारण दैवी गुणों से सम्पन्न थी। वह किसी बन्धन को स्वीकार न कर मनमाने मार्गों का अनुसरण करती थी। उसकी इस असाधारण प्रतिभा से प्रभावित होकर देवता लोग विश्व के क्याण की दृष्टि से उसे हिमालय से माँग कर ले गये। पर्वतराज की दूसरी कन्या उमा बड़ी तपस्विनी थी। उसने कठोर एवं असाधारण तपस्या करके महादेव जी को वर के रूप में प्राप्त किया।”

एक वृक्ष पर बहुत से कबूतर रहते थे| एक दिन प्रातःकाल कबूतर भोजन की तलाश में उड़े| उड़ते-उड़ते उनकी दृष्टि एक जगह बिखरे हुए दानों पर पड़ी|

एक बार हस्तिनापुर के महाराज प्रतीप गंगा के किनारे तपस्या कर रहे थे। उनके रूप-सौन्दर्य से मोहित हो कर देवी गंगा उनकी दाहिनी जाँघ पर आकर बैठ गईं। महाराज यह देख कर आश्चर्य में पड़ गये तब गंगा ने कहा, “हे राजन्! मैं जह्नु ऋषि की पुत्री गंगा हूँ* और आपसे विवाह करने की अभिलाषा ले कर आपके पास आई हूँ।” इस पर महाराज प्रतीप बोले, “गंगे! तुम मेरी दहिनी जाँघ पर बैठी हो। पत्नी को तो वामांगी होना चाहिये, दाहिनी जाँघ तो पुत्र का प्रतीक है अतः मैं तुम्हें अपने पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करता हूँ।” यह सुन कर गंगा वहाँ से चली गईं।

एक धोबी के पास एक बूढ़ा-सा मरियल गधा था| गधा रोज सवेरे मैले कपड़ो की गठरी लेकर घाट जाता और शाम को धुले कपड़ो को लादकर घर लाता था| रात होने पर उसे घुमने की छुट्टी मिल जाती थी| एक बार घुमते-फिरते उसकी भेंट एक गीदड़ से हुई| दोनों दोस्त बन गये| अब दोनों भोजन की तलाश में साथ-साथ घूमने लगे|

एक जंगल था| जंगल का राजा शेर एक दिन पेड़ की छाया में सो रहा था| एक छोटा चूहा अपने बिल से दौड़ कर आया और शेर की नाक पर उछल-कूद करने लगा| इससे शेर जाग गया|

एक बार हस्तिनापुर नरेश दुष्यंत आखेट खेलने वन में गये। जिस वन में वे शिकार के लिये गये थे उसी वन में कण्व ऋषि का आश्रम था। कण्व ऋषि के दर्शन करने के लिये महाराज दुष्यंत उनके आश्रम पहुँच गये। पुकार लगाने पर एक अति लावण्यमयी कन्या ने आश्रम से निकल कर कहा, “हे राजन्! महर्षि तो तीर्थ यात्रा पर गये हैं, किन्तु आपका इस आश्रम में स्वागत है।”

एक बरगद के पेड़ पर एक कौवे और कौवी ने घोंसला बनाया| वे अपने बाल-बच्चों के साथ उस घोसले में रहने लगे|

स्वामी स्वतंत्रतानन्द जी एक कर्मठ साधु थे| वह प्रतिदिन अपने आश्रम में जनता को उपदेश देते थे| प्रतिदिन वह जनता और श्रोताओं से अनुरोध करते थे कि यदि वे जीवन में आगे बढ़ना चाहते हो तो उन्हें किसी बुराई को छोड़ने का व्रत लेना होगा और किसी अच्छी बात को जीवन में अपनाने का संकल्प लेना चाहिए|

एक लोमड़ी थी| एक दिन वह बहुत भूखी थी| वह भोजन की खोज में इधर-उधर घूम रही थी| उसे एक बाग में अंगूर की एक बेल दिखाई दी जिस पर पके हुए अंगूर लटक रहे थे|

महाभारत का युद्ध चल रहा था। सूर्यास्त के बाद सभी अपने-अपने शिविरों में थे। उस दिन अर्जुन ने कर्ण को पराजित कर दिया था। इसलिए वह अहंकार में चूर थे। वह अपनी वीरता की डींगें हाँकते हुए कर्ण का तिरस्कार करने लगे।

एक समय की बात है| एक तालाब के किनारे एक सारस रहता था| तालाब में बहुत सारी मछलियां थी| सारस रोज भरपेट मछलियां खाता|

एक कौआ बहुत प्यासा था| वह पानी की खोज में इधर उधर उड़ने लगा| प्यास के मारे वह दूर तक उड़न भरने में असमर्थ था| वह एक बगीचे में गया| उसे कहीं भी पानी के दर्शन नहीं हुए| तभी उसने दूर एक घड़ा देखा|