वृद्ध की सीख
एक राजा था| उसे हर घड़ी इस बात का डर लगा रहता था कि कहीं कोई दूसरा राजा उसके राज्य पर हमला करके उसे मार न डाले| वह सुरक्षा का उपाय सोचता, लेकिन उसकी समझ में कुछ भी न आता|
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आखिर एक दिन अचानक उसे एक रास्ता सूझा| उसने सोचा कि एक ऐसा महल बनवाया जाए जो चारों ओर से बंद हो| न उसमें रोशनदान हों, न जंगले, न उसमें दरवाजे हों, न खिड़कियां| बस एक दरवाजा हो| ऐसे महल पर किसी का भी हमला कारगर नहीं होगा|
इस विचार के आते ही राजा ने काम शुरू कर दिया और कुछ ही दिनों में वह मनचाहा महल बनकर तैयार हो गया| जिसने भी उस महल को देखा, चकित रह गया| उसमें दुश्मन तो क्या, एक परिंदा तक नहीं आ सकता था| सबने राजा की बुद्धि की भूरि-भूरि प्रशंसा की|
राजा का पूरा भरोसा हो गया कि अब उसका कोई भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता|
संयोग से एक दिन एक वृद्ध आदमी उस महल को देखने आया| राजा ने बड़े उल्लास से उसे सारा महल दिखाया, लेकिन उस वृद्ध के चेहरे पर उसे खुशी नहीं दिखाई दी| राजा ने पूछा – “कहो महल कैसा लगा?
वृद्ध ने गंभीर होकर कहा – “राजन महल तो अच्छा है, लेकिन आपने एक भूल की है|”
राजा ने विस्मय से पूछा – “क्या?”
वृद्ध ने कहा – “आपने केवल एक दरवाजा रखा है| इस दरवाजे से दुश्मन तो नहीं आ सकता, लेकिन अगर मौत आ गई तब? इस दरवाजे को भी बंद करके आप भीतर बैठ गए होते तो शायद पूरी तरह से बचत हो जाती|”
वृद्ध के कथन से राजा की आंखें खुल गईं| उसने समझ लिया कि बंद महल व्यर्थ है| वह दुश्मन से तो बचा सकता है, पर मौत से नहीं| जिसके लिए दरवाजे की भी जरूरत नहीं है क्योंकि मौत जब आती है तो उसे दुनिया की कोई दीवार, कोई दरवाजा नहीं रोक सकता|