वफादारी

बहुत पहले की बात है | अफ्रीका में मंडल नाम का एक व्यक्ति रहता था | उसके पास ढेरों गाएं थीं | इसके अतिरिक्त बकरियां, हिरन व घोड़े भी उसने पाल रखे थे |

“वफादारी” सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio

मंडल अपने जानवरों को बहुत प्यार करता था | परंतु इतने सारे जानवरों की देखभाल करना आसान नहीं था | उन जानवरों के चारे की व्यवस्था व देखभाल के लिए मंडल ने पिट्ठू नाम का एक लड़का रख लिया |

कुछ ही दिनों में सभी जानवर पिट्ठू से हिल-मिल गए | पिट्ठू उन सभी जानवरों से बहुत प्यार करता था | इस कारण ऐसा जान पड़ता था कि मानो वह इन जानवरों की भाषा जानता हो | जिस जानवर को जिस चीज की जरूरत होती, वह चीज वह उसके लिए ले जाता |

कभी किसी जानवर को चारे की जरूरत होती तो कभी पानी की, कभी नहाने की | अकेला पिट्ठू उन सबकी उचित देखभाल करता था | इस कारण वे सभी जानवर भी पिट्ठू को प्यार करने लगे थे | पिट्ठू उन जानवरों को सीटी बजाकर एक जगह इकट्ठा कर लेता था | सीटी बजते ही सभी जानवर अपना भोजन तक छोड़कर पिट्ठू के पास आ जाते थे |

मंडल को पिट्ठू के होते अपने जानवरों की फिक्र करने की आवश्यकता नहीं थी | पिट्ठू गायों को चराने पास के जंगल में ले जाता था | वह प्रतिदिन सुबह गायों को ले जाता और शाम को गायों को वापस ले आता | पिट्ठू हर समय इस बात का ध्यान रखता था कि कोई जंगल जानवर किसी गाय पर अचानक हमला न कर दे |

एक दिन पिट्ठू जंगल में गाएं चरा रहा था कि अचानक डाकुओं ने हमला बोल दिया | पिट्ठू डाकुओं के इस हमले के लिए तैयार न था, अत: एकदम समझ ही न पाया कि उसे क्या करना चाहिए | वह झट से एक झाड़ी में छिप गया |

डाकुओं ने मोटी ताजी गायों का इतना बड़ा झुंड देखा तो बहुत खुश हुए | डाकुओं का सरदार बोला – “आज पहली बार इतनी तंदुरुस्त गायों का झुंड हमारे हाथ लगा है, जल्दी से इन्हें हांक कर ले चलो |”

सारे डाकू गायों को जंगल के दूसरे रास्ते की ओर हांकने लगे | लेकिन ऐसा प्रतीत होता था कि मानो सारी गायें बहरी हों और किसी का इशारा न समझती हों | वे जहां की तहां खड़ी रहीं | कुछ गाएं घास चरती रहीं, कुछ बैठी जुगाली करती रहीं |

डाकू परेशान थे कि गाएं आखिर बढ़ क्यों नहीं रहीं ? उन्होंने गायों को डंडों के जोर पर हांकना आरंभ कर दिया | परंतु गाएं फिर भी टस से मस नहीं हुईं |

डाकुओं के सरदार को क्रोध आने लगा और वह गायों को किसी भी तरह आगे बढ़ाने के लिए अपने साथियों को आदेश देने लगा | तभी एक डाकू बोला – “सरदार लगता है इन गायों का कोई चरवाहा दोस्त है, जो यहीं कहीं छिपा है | जिनकी आज्ञा के बिना ये यहां से आगे नहीं बढ़ रही हैं |”

सरदार को अपने साथी की बात जंच गई | वह बोला – “फिर तो इन गायों का दोस्त यहीं-कहीं छिपा होगा | तुम लोग मिलकर उसे ढूंढ़ निकालो |”

पिट्ठू पौधों व झाड़ियों की ओट में छिपा डाकुओं की बातचीत सुन रहा था | एक तरफ उसे डाकुओं से डर लग रहा था, दूसरी तरफ गायों के व्यवहार को देखकर उसे बहुत खुशी हो रही थी |

सारे डाकू घोड़ों से उतर कर चरवाहे को इधर-उधर ढूंढ़ने लगे | तभी मौका पाकर पिट्ठू एक पेड़ के खोखले तने में घुस कर खड़ा हो गया |

काफी देर तक कोई चरवाहा न मिलने पर दो-तीन डाकू अपने-अपने घोड़ों पर चढ़कर घनी घास में चरवाहे को ढूंढ़ने का प्रयास करने लगे | ढूंढ़ते-ढूंढ़ते एक डाकू का घोड़ा उसी पेड़ के आगे खड़ा हो गया जिसमें पिट्ठू छिपा बैठा था | घोड़े की पूंछ के बाल पिट्ठू के मुंह से छूने लगे | अचानक कुछ बाल पिट्ठू की नाम में घुस गए और पिट्ठू को छींक आ गई |

डाकू ने लपक कर पिट्ठू को पकड़ लिया और तने के बाहर खींच लिया | पिट्ठू को डाकुओं के सरदार के सामने उपस्थित किया गया | सरदार ने पूछा – “क्या इन गायों को तुम्हीं चराते हो ?”

पिट्ठू ने डरते-डरते हामी भर दी | डाकुओं के सरदार ने आदेश दिया – “इस छोकरे को अपने घोड़े पर बिठा लो और छोकरे से कहो कि वह गायों को अपने साथ चलने का आदेश दे |”

पिट्ठू ने एक सीटी बजाई, सारी गाएं एक साथ आकर खड़ी हो गईं | डाकुओं ने पिट्ठू को अपने घोड़े पर बिठा लिया | पिट्ठू ने इशारे पर सारी गाएं उन घोड़ों के पीछे चल दीं | डाकू काफी दूर तक चलते रहे | गाएं भी चुपचाप चलती रहीं | हालांकि गाएं थक चुकी थीं, परंतु पिट्ठू के इशारे के कारण चलती जा रही थीं |

ऊबड़-खाबड़ और पथरीले पहाड़ी रास्ते आने लगे, परंतु डाकू अपने घोड़ों पर चलते रहे, साथ ही गाएं भी चलती रहीं | आखिर एक जगह जाकर डाकू रुक गए | यहीं डाकुओं का अड्डा था | डाकुओं ने सारी गायों को बांध दिया |

डाकुओं के सरदार ने आदेश दिया – “आज इन सारी गायों का दूध दुह कर सबके दूध पीने का इंतजाम करो | कल को इस काली वाली गाय का मांस हमें भोजन में चाहिए | अत: इसे अच्छी तरह चारा खिला दो |”

ठीक वैसा ही किया गया | रात्रि हो गई तो सभी डाकू थक कर सो गए, लेकिन पिट्ठू की आंखों में नींद नहीं थी | वह यह सोचकर बेचैन हुआ जा रहा था कि कल एक गाय को मार दिया जाएगा | इस तरह तो डाकू सारी गायों को मार डालेंगे | पिट्ठू परेशान था कि किस तरह डाकुओं के बंधन से मुक्ति पाई जाए |

पिट्ठू ने सोचा कि डाकुओं के चंगुल में फंस कर भी जान खतरे में है तो क्यों न जान पर खेल कर खुद को व गायों को बचा लूं | उसने अंधेरे में उठ कर गायों की रस्सी खोल दी | फिर गायों को धीमे से आवाज लगा कर शहर की ओर चल दिया | उसने देखा कि सभी गाएं उसके पीछे आ रही थीं | वह बिना पीछे मुड़े चलता रहा | रात्रि बीतने को थी | सुबह की लालिमा दिखाई देने लगी थी | पिट्ठू ने देखा कि सभी गाएं सही-सलामत पीछे आ गई थीं |

पिट्ठू सभी गायों को लेकर उनके मालिक मंडल के पास गया | मंडल शाम को गायों के वापस न आने से बहुत परेशान था | वह इतनी सुबह भी गायों के इंतजार में बाहर ही टहल रहा था |

पिट्ठू को दूर से आता देख मंडल उसे घर ले आया | पिट्ठू ने मंडल को सारी घटना सुनाई | घटना सुनकर मंडल की आंखों में आंसू निकल पड़े | उसने पिट्ठू को गले से लगा लिया और सभी गायों पर हाथ फेरते हुए उन्हें खूब प्यार करने लगा | उन्हें देख कर यूं लगता था कि वो आपस में बरसों बाद मिल रहे हों |