वृद्ध ने युवक को पढ़ाया सतर्कता व धर्य का पाठ
एक वृद्ध व्यक्ति युवकों को पेड़ पर चढ़ने व उतरने की कला सिखाया करता था। वह ऊंचे से ऊंचे पेड़ों पर चढ़ना-उतरना इस हुनर के साथ सिखाता था कि युवक इस कार्य में अति निपुण हो जाते थे। यह कला उन्हें खेती में काम आती थी और अनेक बार जंगली जानवरों से आत्मरक्षार्थ भी। वृद्ध इस कला को गहराई से जानता था।
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एक दिन एक युवक वृद्ध के पास आया और उसने निवेदन किया कि वह शीघ्रातिशीघ्र इस कला में दक्ष होना चाहता है। तब वृद्ध ने उसे इस कला के विषय में अनेक महत्वपूर्ण बातें बतलाते हुए कहा- बेटा! पेड़ पर चढ़ते व उतरते समय सतर्कता व धर्य जरूरी है। इस पर युवक बोला- बाबा! इसमें कौन सी नई बात है, यह तो सभी जानते हैं। और वह वृद्ध के बताए अनुसार पेड़ की सबसे ऊपर की डाल पर पहुंच गया। वृद्ध देखता रहा और हिम्मत बढ़ाता रहा।
वापसी में जब युवक तीन चौथाई उतर गया तो वृद्ध ने कहा- बेटा! सावधानी से, शीघ्रता न करना। युवक ने सुना और सावधानी से उतरने लगा, किंतु वह हैरान होकर बोला- बाबा, जब चोटी पर था तब तो आप चुपचाप बैठे रहे और जब आधी से अधिक दूरी उतर आया तो अब सावधान रहने के लिए कह रहे हैं। तब वृद्ध ने कहा- जब तुम चोटी पर थे तो तुम स्वयं सावधान थे, किंतु लक्ष्य को पास आता देख लोग अकसर असावधानी कर बैठते हैं और चोट खाते हैं। इसलिए मैंने तुम्हें सावधान किया।
कथा का संदेश यह है कि अपने निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति में कभी भी शीघ्रता नहीं करनी चाहिए। शीघ्रता हानिकारक होती है और अनेक बार लक्ष्य उपलब्धि में यह बाधक बन जाती है। अत: धर्य व सतर्कतापूर्वक कार्य करें।