विश्वामित्र का राज्य सभा में प्रवेश
अगले दिन जैसे ही राजा हरिश्चंद्र राज्य दरबार में अपने सिंहासन पर बैठे, विश्वामित्र ने प्रवेश किया| राजा ने स्वयं महर्षिकी अगवानी की|सभासदों ने खड़े होकर उनका स्वागत किया| विश्वामित्र ने कहा, “राजन! मुझे पहचाना?
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कल वन में ब्राह्मण वेश में ही तुमसे मिला था और तुमने मेरा पुत्र के विवाह में अपना सम्पूर्ण राज्य मुझे दे दिया था| तुम बड़े ही धार्मिक और सत्यवादी राजा हो|अपने वचना का पालन करो|
यह राज्य छोड़ दो और दान के साथ दी जाने वाली मेरी ढाई भार सोने की दक्षिणा भी मुझे दो|”
हरिश्चंद्र ने हाथ जोड़कर कहा, “भगवन ! राज्य आपका ही है| इसे मैंने आपको दिया| रहा ढाई भार सोना, वह मै अभी आपको मंगाए देता हूं|”
“वाह! वह सोना तुम कहां से लाओगे? “राजकोष तथा एस राज्य की प्रत्येक वस्तु पर तो अब मेरा अधिकार है| ऐसा करके क्या तुम मुझसे कपट नहीं कर रहे?”