विश्वामित्र का राजा के पास आना
ब्राह्मण वेशधारी विश्वामित्र एक बूढ़ी औरत के पास उसकी देखभाल करने के लिए शैव्या और रोहिताश्व को छोड़कर वापस विश्वामित्र के रूप में राजा हरिश्चंद्र के पास आए|
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“राजन! सांझ होने जा रही है| मेरी दक्षिणा का क्या हुआ?” विश्वामित्र ने पूछा|
हरिश्चंद्र शैव्या और रोहिताश्व की याद में डूबे हुए थे| वे सोच रहे थे कि ‘आज उनकी प्रिय पत्नी दूसरे की दासी हो गई| पुत्र, जो कल राजा बनता, वह आज पराश्रित हो गया था|’ विश्वामित्र की आवाज सुनकर राजा हरिश्चंद्र चौंक पड़े और स्वर्ण मुद्राओं की थैली उनकी ओर बढ़ाते हुए बोले, “ऋषिवर! यह लीजिये अपनी दक्षिणा|”
“अरे! यह धन तुझे कहां से मिला?” विश्वामित्र ने चौंकते हुए पूछा,” क्षत्रिय होकर तुमने यह धन किसी से माँगा तो नहीं होगा? देखो, न्याय द्वारा उपार्जित धन ही दक्षिणा के योग्य होता है| अन्याय से कमाया हुआ धन मैं नहीं लूँगा|”
जब राजा ने सारी बात विश्वामित्र से बताई तो वे बोले, “लेकिन यह धन तो बहुत कम है| इससे मेरी दक्षिणा पूरी नहीं होती| शीघ्र ही मुझे और धन दो| नहीं तो…|” वे राजा को धमकी देकर वंहा से चले गए|