विश्वामित्र का माया जाल
ब्राम्हण के वेश में विश्वामित्र राजा हरिश्चंद्र को लेकर अपने आश्रम पर पहुंच| वंहा वास्तव में एक विवाह का आयोजन किया जा रहा था| वेदी के पास दूल्हा-दुल्हन और आश्रमवासी विवाह संपन्न कराने की तैयारी कर रहे थे|
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ब्राह्मण ने राजा से कहा, “राजन! मैंने संसार में आपकी बड़ी कीर्ति सुनी है| आप जैसा दानी कोई दूसरा नहीं हैं| मैंने यह भी सुना है कि देव सभा में महर्षि वशिष्ठ ने आपकी दानशीलता की प्रशंसा करते हुए कहा था कि ऐसा दानी न पहले कभी हुआ और न होगा, अतः विवाह के अवसर पर आप इस गरीब ब्राह्मण को भी कुछ दान दे दीजिये|”
राजा ने कहा, “भगवन! आपकी जो इच्छा हो मांग लें| ऐसी कोई वस्तु नहीं हैं, जिसे मैं न दे सकूं|”
राजा हरिश्चंद्र उस समय पूरी तरह ब्राह्मण वेशधारी विश्वामित्र के अधीन हो चुके थे| ब्राह्मण ने कहा, “राजन! मैं क्या मांगूं? आप जो भी देना चाहते हैं, वर-वधू को दे दीजिये|”
पुरोहित के मंगलाचार के बीच राजा हरिश्चंद्र विचार करने लगे की वे वर-वधू को दानरूप में क्या दें|