विश्वामित्र का क्रोध
राजा हरिश्चंद्र के शब्द सुनकर तपस्वी उठ खड़ा हुआ और क्रोधित होता हुआ बोला, “ठहर जा दुरात्मन! अभी तुझे तेरे अहंकार का मजा चखाता हूं|”
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अपने सामने राजर्षि विश्वामित्र को देखकर राजा हरिश्चंद्र हक्के-बक्के रह गए| धनुष-बाण फेंक वे उनके सम्मुख हाथ जोड़कर बैठ गए और नम्रता से बोले, “महर्षि! मैंने जघन्य अपराध किया है| आप मुझे क्षमा करें| नासमझी में ही मुझसे यह अपराध हो गया है| राजा का धर्म है कि वह किसी को विपत्ति में देख कर उसकी रक्षा करे| दान देना और रक्षा करना ही तो राजा का धर्म है| प्रजा की सुरक्षा के लिए ही राजा शस्त्र उठाता है| आप तो राजधर्म को अच्छी प्रकार से समझते है| आप मेरी न्याय कीजिए|”
विश्वामित्र राजा की बात सुनकर शांत हो गए|