Homeशिक्षाप्रद कथाएँविश्वामित्र द्वारा राजा का अपमान

विश्वामित्र द्वारा राजा का अपमान

विश्वामित्र द्वारा राजा का अपमान

जिस समय राजा हरिश्चंद्र महर्षि वशिष्ठ और अयोध्यावासियो को समझा रहे थे, उसी समय विश्वामित्र अंगरक्षकों से घिरे हुए रथ पर सवार वंहा पहुंचे और लोगों से घिरे राजा, रानी और उनके पुत्र को देखकर चीखे, “हरिश्चंद्र! तू धर्मभ्रष्ट हो गया है|

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झूठा है तू| मेरे साथ कपट करता है| दान करके उसे फिर से वापस पाने की इच्छा रखकर तू प्रजा को भड़का रहा है| लज्जा आनी चाहिए तुझे|”

विश्वामित्र की कठोर बाणी सुनकर राजा ने अपनी और पुत्र का हाथ और पकड़ा और तेज गति से भीड़ को चीरते हुए वंहा से चल पड़े|

विश्वामित्र के इस कृत्य को देखकर आकाश के त्रिदेव (ब्रम्हा, विष्णु, महेश ) का ह्रदय भी पिघल गया| भगवान शंकर के मुख से निकल पड़ा, “तपस्वी होने के बाद भी विश्वामित्र ने अपनी क्षत्रियों की कठोरता का परित्याग नहीं किया है| राजा को मैं अपनी नगरी काशी में शरण दूंगा| देखता हूं यह उनका क्या बिगड़ता है?”

विष्णु ने कहा, “शांत हो जाएं महादेव! सत्य की स्थापना में महात्माओं को कष्ट उठाने पड़ते हैं|”