विनम्रता

एक समय की बात है| अचानक ओलों की वर्षा से सारी फसल नष्ट हो गई| कुरू प्रदेश में एक गाँव में हाथीवान रहते थे| इसी गाँव में एक निर्धन ऋषि उशस्ति चाकृायण अपनी पत्नी के साथ रहने लगे| गाँव में कहीं अनाज का दाना नहीं मिला|

भूख से ऋषि अत्यधिक व्याकुल हो उठे| उन्होंने देखा कि एक हाथीवान गले-सड़े उड़द खा रहा था| ऋषि ने हाथीवान से उन जूठे उड़दों की ही भीख माँगी| ऋषि ने जूठे उड़दों से अपनी भूख मिटाई और बचे उड़द लाकर अपनी पत्नी को दे दिए| पत्नी पहले ही भीख माँगकर अपनी भूख को मिटा चुकी थी| वे जूठे उड़द पत्नी के अगले दिन के लिए संभालकर रख दिए|

ऋषि भूख की वजह से बहुत लाचार और पस्त हो गए थे| अगले दिन जूठे उड़द वह कुछ शक्ति जूटाकर जीविका की खोज में चल पड़े| उन्होंने एक स्थान पर देखा कि एक राजा एक हवन करवा रहे थे, परंतु यज्ञ के सब सूत्रधार-महर्षि अपने काम में अनाड़ी थे| ऋषि ने यज्ञ की विधि के विषय में उन संयोजकों से कुछ प्रश्न पूछे, जिसका वे ठीक जवाब नहीं दे सके| यह देखकर राजा ने उनका परिचय पूछा| ऋषि ने उत्तर दिया, “मेरा नाम उशस्ति चाकृायण है|”

राजा ने कहा- “मैंने आपकी विद्वता और आपका नाम सुना है| मैंने आपको बहुत ढुँढ़वाया था, पर आप मिले नहीं| अब आप ही इन ऋत्विजों के मुख्य ऋत्विज का कार्य करें|”

उशस्ति ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और कहा- “जितनी दक्षिणा इन लोगों से तय हुई है, उतनी ही मैं लूंगा, उससे अधिक नहीं|”

ऋषि की उदारता को देखकर दूसरे ऋत्विज प्रभावित हो गए| जब उन्होंने अपने यज्ञ-कार्य में त्रुटि पूछी तब ऋषि ने उनका समुचित समाधान कर दिया|

विद्या के साथ झूठा अहंकार भी पैदा हो सकता है| परंतु यथार्थ विद्या वह है जहाँ विद्या के साथ विनम्रता भी हो| इसी के साथ निर्धन व्यक्ति भी गुणी और महान् हो जाता है| इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि विनम्र व्यक्ति सम्मान का पात्र है|