तीन दिन का राज्य
एक राजकुँअर थे| स्कूल में पढ़ने के लिए जाते थे| वहाँ प्रजा के बालक भी पढ़ने जाते थे| उनमें से पांच-सात बालक राजकुँअर के मित्र हो गये| वे मित्र बोले-‘आप राजकुँअर हो, राजगद्दी के मालिक हो| आज आप प्रेम और स्नेह करते हो, लेकिन राजगद्दी मिलने पर ऐसा ही प्रेम निभाएंगे, तब हम समझेंगे कि मित्रता है, नहीं तो क्या है?’ राजकुँवर बोले कि अच्छी बात है|
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समय बीतता गया| सब बड़े हो गये| राजकुँअर को राजगद्दी मिल गयी| एक-दो वर्ष में राज्य अच्छी प्रकार जम गया| राजकुँअर ने अपने मित्रों में से एक को बुलाया और कहा कि तुम्हें याद है कि तुमने क्या कहा था-‘राजा बनने के बाद मित्रता निबाहो, तब समझें|’ ‘ अब तुम्हें तीन दिन के लिए राज्य दिया जाता है| आप राजगद्दी पर बैठो और राज्य करो|’ वह बोला-‘अन्नदाता! वह तो बचपन की बात थी| मैं राज्य नहीं चाहता|’ बहुत आग्रह करने पर उस मित्र ने तीन दिन के लिये राज्य स्वीकार कर लिया|
वह मित्र राजगद्दी पर बैठा और उस दिन खान-पान ऐश-आराम में मग्न हो गया| दूसरे दिन सैर-सपाटा आदि में लगा रहा| रात हुई तो बोला-‘हम तो राजमहल में जायेंगे|’ सब बड़ी मुश्किल में पड़ गये| रानी बड़ी पतिव्रता थी| वह मित्र तो अड़ गया कि सब कुछ मेरा है, मै राजा हूं तो रानी भी मेरी है| रानी ने अपने कुलगुरु ब्राह्मण देवता से पुछवाया कि अब मै क्या करूँ? गुरु जी महाराज ने कहा-‘बेटी! तुम चिंता मत करो, हम सब ठीक कर देंगे| गुरु जी ने उस दिन के लिए राजा बने मित्र से पूछा कि आप महलों में जाना चाहते है तो राजा की भांति जाना ठीक होगा| इसलिए आपका ठीक तरह से श्रृंगार होगा| उन्होंने भूतों को बुलाया और आज्ञा दी-महाराज के महलों में जाने की तैयारी करो, श्रृंगार करो| नाई को बुलाया और कहा कि महाराज की हजामत करो ठीक ढंग से| तीन-चार घंटे हो गये, तब वह राजा से बोला-ऐसे क्या देरी लगाते हो? तो नाई बोला-महाराज! राजाओं का मामला है, साधारण आदमी की तरह हजामत कैसे होगी? हजामत में लंबी कर दी अर्थात् बहुत देर लगा दी| इसके बाद पोशाक पहनाने वाला आदमी आया|उसने बहुत देर पोशाक पहनाने में लगा दी| उसके बाद इत्र-तेल-फुलेल आदि लगाने वाला आया| उसने देर लगाई| इस प्रकार श्रृंगार-श्रृंगार में ही रात बीत गयी| अब सुबह हो गयी| अंतिम दिन था| समय पूरा हो गया और राजगद्दी वापस राजा साहब को मिल गयी| राजा साहब ने अब अपने दूसरे मित्र को बुलाया और आग्रहपूर्वक तीन दिन के लिए राज्य दे दिया और बोला की मैं, मेरी स्त्री मेरा घर-ये सब तो मेरे हैं| मैं भी आपकी प्रजा हूँ| बाकी सारा राज्य आपका है| वह मित्र तीन दिन के लिए राजा बन गया|
राज्य मिलते ही उस मित्र ने पूछा कि मेरा कितना अधिकार है? मंत्री ने जवाब दिया-‘महाराज! सारी फौज, पलटन खजाना और इतनी पृथ्वी पर आपका राज्य है| उसने दस-बीस कहाँ, क्या-क्या चीज की कमी है, किसको क्या-क्या तकलीफें है-पता लगाकर मुझे बताओ| उन्होंने आकर खबर दी-फलाँ-फलाँ गांव में पानी की तकलीफ है, कुआँ नही है, धर्मशाला नहीं है, पाठशाला नहीं है| उस राजा ने हुक्म दिया कि सब गाँव में जहाँ जो कमी है, तीन दिन में पूरी हो जानी चाहिये| खजांची को कह दिया कि मकान, धर्मशाला, पाठशाला, कुएँ आदि बनाने में जो भी खर्च हो, वह तुरन्त दिया जाय| राजा का हुक्म होते ही अनेक लोग राजाज्ञा ले पालन में लग गये| तीन दिन पूरे होते-होते विभिन्न स्थानों से समाचार आने लगे कि इतना-इतना काम हो गया है और इतना बाकी रहा है| जल्दी पूरा करने का आदेश देकर, उस मित्र ने राज्य वापस राजा को दे दिया|राजा बड़े प्रसन्न हुए और बोले कि हम तुम्हें जाने नहीं देंगे, अपना मंत्री बनायेंगे| हमें राज्य मिला, लेकिन हमने प्रजा का इतना ध्यान नही रखा, जितना आपने तीन दिन में रखा है| अब राजा तो नाममात्र के रहे और वह मित्र सदा के लिए उनका विश्वासपात्र मंत्री बन गया|
इसी प्रकार हमें बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था-ऐसे तीन दिन के लिए भगवान् की तरफ से राज्य मिला है| अब जो रुपया-संग्रह और भोग भोगने में लगे हैं, उनकी तो हजामत हो रही है और जो दूसरे मित्र की सेवा कर रहे हैं, उनको भगवान् कहते है-
‘मैं तो हूँ भगतन को दास, भगत मेरे मुकुट मणि||’
तो भाई, हमारे पास जो भी धन,सम्पत्ति, वैभव आदि है, उसके द्वारा सबका प्रबंध करो, सबकी सेवा करो| यह राज्य तीन दिन के लिए मिला है| अब निर्णय अपने को करना है कि हजामत में समय खोना है या भगवान् का विश्वासपात्र बनाना है, लक्ष्मी जी हमारी माँ हैं| भगवान् हमारे पिता हैं| निर्वाह के लिए लक्ष्मी माँ से ले लो; लेकिन लक्ष्मी जी को भोगना चाहते हैं, स्त्री बनाना चाहते हैं-यह पाप है| वह हमारी पूज्यनीय माँ है| सेवाभाव होगा तो माँ भी खुश होंगी और पिता जी भी खुश होंगे| फिर हमें संसार में लौटने की आवश्यकता नही रहेगी| पिता जी के धाम में हमारा सदा निवास होगा|