तीसमार खां
फन्टूश एक शैतान और नटखट लड़का था | उसका पढ़ाई में बिल्कुल मन नहीं लगता था | घर वाले उसे समझाते थे कि यदि तुम पढ़ोगे-लिखोगे नहीं तो तुम्हारा जीवन व्यर्थ हो जाएगा | वे कहते थे कि पुस्तकों में ज्ञान का भंडार है, ये तुम्हें ऐसी बातों का ज्ञान कराती हैं जिनका ज्ञान कोई व्यक्ति आसानी से नहीं करा सकता |
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परंतु फन्टूश था कि इस ओर ध्यान ही नहीं देता था | कभी-कभी उसे लगता कि उसके पिता सही कहते हैं | उसे ध्यान से पढ़ाई करनी चाहिए और वह उसी दिन से पढ़ाई में मन लगाने की योजना बनाने लगता | परंतु पुस्तक उठाने के पहले ही उसे कुछ और सूझ जाता और वह उस काम में जुट जाता |
यूं तो वह पढ़ाई में बुद्धू लड़का था, परंतु उसका दिमाग बहुत तेज था | वह सारी बातों को जल्दी ही समझ जाता था | फन्टूश अक्सर शाम को अपने पिता के पास दुकान पर चला जाया करता था | वहां पिता के काम में हाथ बंटाया करता था, जिससे पिता को यह तसल्ली होती थी कि चलो मेरा बेटा यदि पढ़-लिख नहीं सकता तो भी मेरी अनाज की दुकान और चक्की तो ठीक प्रकार संभाल ही लेगा |
फन्टूश पन्द्रह वर्ष का हो चला था | वह देखने में पतला-दुबला था, इस कारण सभी लोग उसे बच्चा ही समझते थे | फन्टूश की इच्छा होती थी कि लोग उससे इज्जत से बात करें | बड़ों की भांति उससे व्यवहार करें |
एक बार गांव में दंगल हुआ तो फन्टूश ने निश्चय किया कि वह भी अखाड़े में उतरेगा | यदि किस्मत से वह जीत गया तो लोग उसकी ताकत से डरने लगेंगे और उसे फन्टूश पहलवान कह कर पुकारा करेंगे | फन्टूश मन ही मन कल्पना कर रहा था कि जब लोग उसे फन्टूश पहलवान या पहलवान जी कहेंगे तो उसे कैसा गर्व महसूस होगा | उसके पिता पहलवान के पिता कहलाएंगे |
फन्टूश रोज जमकर वर्जिश और व्यायाम करने लगा | वह खूब दूध-बादाम खाता ताकि कुश्ती में जीत सके | परंतु उसने अपने माता-पिता को अखाड़े में भाग लेने के बारे में नहीं बताया | धीरे-धीरे कुश्ती का दिन आ पहुंचा | फन्टूश लंगोट बांधकर शरीर में तेल मालिश कर अखाड़े में पहुंच गया | परंतु उसे अखाड़े का अनुभव नहीं था, इस कारण उसे जल्दी ही चारों खाने चित होना पड़ा |
कुश्ती में फन्टूश की पैर की हड्डी खिसक गई तो चार लोग उसे घर पहुंचा आए | फन्टूश का हाल देखकर उसके मां-बाप बहुत दुखी हुए, साथ ही फन्टूश को अखाड़े में भाग लेने के कारण अच्छी फटकार लगाई |
समय बीतता गया और फन्टूश स्वस्थ हो गया | अब वह पढ़ाई खत्म करके पिता की दुकान पर बैठने लगा | वह रोज सुबह तैयार होकर पिता के साथ दुकान पर चला जाता |
एक दिन फन्टूश के मौसा पड़ोस के गांव से आए तो कुछ दिन के लिए उसे अपने साथ ले गए | उसका वहां खूब मन लग रहा था कि वह एक दिन मौसा के साथ बाजार में गया | बाजार में उसने एक पहलवान की दुकान देखी, जहां लिखा था नत्थू पहलवान की दुकान | उस दुकान में एक मूंछों वाला रोबीला आदमी बैठा था, जिसके चारों तरफ 3-4 लोग उसके हाथ-पांव दबा रहे थे | फन्टूश को इस बारे में जानने की बहुत उत्सुकता हुई, वह बोला – “मौसा, यह नत्थू पहलवान क्या करता है ?”
मौसा ने चलते-चलते बताया – “यह यहां का मशहूर पहलवान है, लोग इसके नाम से डरते हैं | यह सात लोगों को मार चुका है | इस कारण लोग इसे सात मार खां कहते हैं |”
मौसा की बात सुनकर फन्टूश बहुत अधिक प्रभावित हुआ | उसका खोया हुआ ख्वाब फिर जाग उठा | वह भी पहलवान बनने का सपना देखने लगा |
एक दिन दोपहर को फन्टूश मौसा के घर खाली बैठा था और भोजन का इंतजार कर रहा था | तभी उसने देखा कि मेज पर कुछ मक्खियां भिनभिना रही हैं | फन्टूश ने हाथ को जोर से घुमाकर मारा तो दो-तीन मक्खियां मर गईं | तभी मौसी उस कमरे में आ गई, वह बोली – “क्या कर रहे हो, फन्टूश ? मैं भोजन अभी लाती हूं |”
फन्टूश बोला – “खाली बैठे क्या करूंगा ? दो-दो को मार चुका हूं |”
मौसी हंसते हुए मजाक के लहजे में बोली – “अच्छा दो का खून कर चुके और क्या इरादा है ?”
“कुछ नहीं मौसी जब तक भोजन नहीं आता, तब तक मक्खियां मारने के सिवा काम ही क्या है ?”
बात-बात में मौसी भोजन लेकर आ गई | शाम को मौसा के सामने मजाक होने लगा कि आज तो फन्टूश ने सात का खून कर दिया |
फन्टूश ने अगले दिन किसी के सामने बातों-बातों में जोर से कहा – “जानते नहीं, मैं सात को मार चुका हूं | अब आठवें तुम तो नहीं ?”
वह आदमी डर गया, परंतु हिम्मत दिखाते हुए बोला – “भैया, सात मार खां तो हमारे गांव में भी है | आठ मार खां होते तो बात कुछ और होती |”
फन्टूश ने मन ही मन निश्चय किया वह आठ मार खां बन कर रहेगा |
अब वह मौसी के घर बैठा-बैठा मक्खियों को ढूंढ़-ढूंढ़कर मारा करता | एक दिन मौसा ने उसे बताया कि वह उसके गांव में जा रहे हैं, फन्टूश तुरंत अपने घर जाने के लिए तैयार होकर आ गया | इतने दिन खाली बैठकर फन्टूश थोड़ा तगड़ा हो चुका था | फन्टूश और मौसा चल दिए |
रास्ते में मजाक में मौसा ने पूछा – “क्यों बेटा, यहां खाली बैठकर कितनी मारीं ?”
फन्टूश हंसकर बोला – “मौसा तीस मार खां बन गया हूं | पूरे तीस का खून कर चुका हूं |”
फन्टूश अपने घर पहुंचकर बहुत खुश था | रात्रि भोज के समय फन्टूश के पिता, मां व मौसा सभी बैठे थे | तभी मौसा फन्टूश के पिता से गंभीर मुद्रा में बोले – “भाई साहब जानते हैं, वहां फन्टूश ने तीस का खून कर दिया ?”
सभी लोग अत्यंत आश्चर्य और कौतूहल भरी निगाहों से मौसा की ओर देखने लगे | मौसा बोले – “आप लोगों को यकीन न हो तो फन्टूश से पूछ लीजिए |”
फन्टूश के पिता घबराते हुए बोले – “बेटा, मौसा क्या कह रहे हैं ?”
फन्टूश ने सिर झुका कर उत्तर दिया – “जी पिता जी, मैं तीस का खून करके तीसमार खां बन गया हूं |”
फन्टूश के माता-पिता एकदम घबराने लगे कि अब क्या होगा ? तभी मौसा ने असली बात बता दी और सबने चैन की सांस ली | धीरे-धीरे पूरे गांव में चर्चा होने लगी कि फन्टूश तीसमार खां बन कर लौटा है | लोग फन्टूश की बेहतर सेहत देखकर यकीन करने लगे और फन्टूश के नाम से डरने लगे | कोई यह पूछने का साहस ही न करता कि फन्टूश ने किसको मारा है |
फन्टूश ने एक बड़ी दुकान खोली, जिस पर बोर्ड लगाया – “तीसमार खां फन्टूश पहलवान की दुकान |” बोर्ड पढ़कर दूर-दूर से लोग फन्टूश के पास आने लगे | अब फन्टूश को कहीं जाना न पड़ता | लोग फन्टूश को उसके हिस्से की बड़ी रकम पेशगी दे जाते और दूसरी जगह जाकर फन्टूश पहलवान का नाम ले लेते | बस उनका काम आसानी से हो जाता |
आस-पास के गांवों में चर्चा करते कि पांच-सात को मारने वाले तो बहुत सुने थे, पर तीसमार खां पहली बार सुना है | उस गांव के लोग गर्व से सिर उठा कर कहते – “भाई, हम तीसमार खां के गांव के रहने वाले हैं, हमसे पंगा मत लेना |”
अब फन्टूश को कहीं बहादुरी दिखाने की या पहलवानी दिखाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती थी | बड़े-बड़े पहलवान उसको सलाम करने आते थे | फन्टूश तीसमार खां बनकर मजे से रहने लगा |
एक बार की बात है फन्टूश के मोहल्ले में बड़े सर्राफ के यहां डकैतों ने हमला बोल दिया | डाकू सारा सोना-चांदी और जेवरात बांध ही रहे थे कि किसी ने फन्टूश को खबर दी – “पहलवान जी जल्दी चलो, सर्राफ के यहां से डाकू सब कुछ लूट कर लिए जा रहे हैं | उन्होंने चुपके से मुझे आपको बुलाने भेजा है |”
फन्टूश पहलवान की भीतर ही भीतर घिग्घी बंध गई | उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे ? उसने तो आज तक बंदूक-पिस्तौल नहीं उठाई थी | किसी को गोली मारना तो दूर थप्पड़ भी नहीं मारा था | परंतु यदि वह मना करता तो उसकी बहुत बदनामी होती | यह सोचकर फन्टूश पहलवान हाथ में डंडा ले, लुंगी बांध कर सर्राफ के घर की तरफ चल दिया |
सर्राफ के घर के बाहर जाकर पहलवान जी भीतर से हिम्मत जुटाकर जोर से बोले – “मैं आ गया हूं तीसमार खां | भीतर कौन है ?आकर पहले मुझसे मुकाबला करो |”
डाकुओं ने तीसमार खां का नाम सुन रखा था | वे घबरा गए, जल्दी से सारी बांधी हुई पोटली छोड़कर गलियों से होकर भाग निकले |
डाकू खुश थे कि आज उनकी जान बच गई | सर्राफ ने बाहर आकर तीसमार खां के पैर पकड़ लिए और उसके आगे ढेर सारे जवाहरात रख कर बोला – “पहलवान जी, यह छोटी सी भेंट है | इसके लिए मना मत कीजिएगा |”
तीसमार खां ने भेंट उठाई और चुपचाप चल दिया | वह मन ही मन खुश हो रहा था कि आज की दुनिया काम को नहीं नाम को पूजती है | उसके लिए उसका नाम ही ख्याति दिलाने को काफी था |
कहते हैं तभी से कहावत बन गई ‘तीसमार खां’ यानी झूठमूठ का बहादुर | लोग बात-बात में कहते हैं – “क्या तुम अपने आपको बहुत बड़ा तीसमार खां समझते हो ?”