तरकीब कामयाब हुई
पुराने समय में महासेन नाम का एक अत्यंत वीर राजा था| दुर्भाग्य से एक बार वह युद्ध में शत्रु से हार गया| उसके मंत्री बड़े स्वार्थी थे, जिसके कारण उसे शत्रु राजा से दंडित भी होना पड़ा|
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उसे शत्रु के सामने झुकना पड़ा, यह विचार राजा के हृदय में शूल की तरह पड़ गया| परिणामस्वरूप वह अस्वस्थ रहने लगा और उसके शरीर में एक फोड़ा हो गया| उस फोड़े से राजा की दशा किसी मृतक जैसी हो गई| राजवैद्य को बुलाया गया| फोड़ा देखकर उसने विचार किया कि यह फोड़ा अपने आप नहीं फूटेगा और राजा इसमें चीरा भी नहीं लगवाएगा, अत: इसके लिए कोई अन्य उपाय करना चाहिए| यह विचार कर वह राजा से बोला – “महाराज! एक अत्यंत दुख देने वाला समाचार है|”
“वह क्या?” भयभीत होते हुए राजा से पूछा|
“महाराज! आपकी महारानी परलोक सिधार गई हैं|”
इतना सुनते ही राजा घबरा गया और उठ खड़ा हुआ| कमजोर तो वह था ही, अत: संभल न सका और गिर पड़ा| गिरने पर फोड़ा फूट गया|
राजा को संभालकर वैद्य ने फोड़ा साफ कराया| राजा फिर भी घबराया हुआ था, अत: वह पुन: उठने का प्रयत्न करने लगा, तब वैद्य ने बताया – “महाराज! रानीजी बिल्कुल सकुशल हैं| आप चिंता न करें| आपके फोड़े के आकस्मिक उपचार के लिए मुझे यह झूठ बोलना पड़ा|”
फोड़ा फूटने के बाद धीरे-धीरे राजा स्वस्थ हो गया और फिर राजकार्यों में रुचि लेने लगा|
कभी-कभी जब अन्य उपाय विफल हो जाते हैं, तब रोगी पर अपनाई गई मानसिक तरकीब कामयाब हो जाती है|