तपस्वी विद्वान
त्याग-तपस्या का हमारे देश में सदा आदर-सम्मान रहा है| साथ ही त्यागी-तपस्वी भी ऐसे रहे हैं जो घोर दरिद्रता में रहे, परंतु कभी किसी के सामने उन्होंने हाथ नहीं पसारा|
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मिथिला में एक नैयायिक थे, किरणावली- ईश्वर-सिद्धि के रचयिता उदयनाचार्य| उन्होंने अपने समय में बड़े-से-बड़े मठाधीशों व धनपतियों से टक्कर ली, सदा सच का सहारा लिया, कभी किसी से हँसी-मजाक नहीं की, सुविधा के लाभ के लिए किसी की खुशामद या याचना नहीं की|
बौद्ध दर्शनों के आचार्यों के सम्मुख हिंदू धर्म का- ईश्वर-सिद्धि का विवेचन कर वह विजय पाते रहे| इतने पर भी इतने त्यागी, तेजस्वी पंडित के घर में अभाव ही आभाव थे| एक बार उनकी पंडिताइन के पास बदलने को वस्त्र भी नहीं रह गए| उसने फटे-पुराने वस्त्र पहन लिए| उसने उनके कपड़ों की चर्चा की| यह चर्चा सुनकर पंडिताइन रो उठी| रोती-बिलखती घर आई| पत्नी को रोते देखकर संयमी तपस्वी उदयनाचार्य भी विचलित हो उठे| उनकी पत्नी अभावों, कष्टों में भी कभी नहीं रोई थी| सारी बात सुनकर उदयनाचार्य भी विचलित हो गए, बोले- “अब तो तुम्हारी लाज की रक्षा के लिए राजा राजा के पास जाना ही होगा|”
पति-पत्नी दोनों चले| रास्ते में नदी पड़ी| मल्लाह ने नदी की उतराई माँगी| उदयनाचार्य सरल भाव से बोले- “ब्राह्मण पंडित हैं|” मल्लाह बिगड़कर बोला- “सभी अपने को पंडित कहते हैं| पंडित तो मिथिला-भर में अकेला उदयन है, जो घोर अभाव में रहा, पर कभी किसी के सामने हाथ नहीं पसारा|” पत्नी ने बात सुनते ही पति को इशारा किया कि उसकी सिंदूर की डिबिया घर में रह गई, नाव से उतर जाइए| दोनों पति-पत्नी घर लौट आए| पत्नी बोली- “हम दुःख कष्ट सह लेंगे, पर अब कहीं नहीं जाएँगे, अपने ऐसे यश को कलंकित कभी नहीं करूँगी| किसी के सामने आपके यशस्वी हाथ को पसारने का मौका नहीं दूँगी|”
स्वाभिमान के लिए मर मिटने वाले आज ऐसे तपस्वी विद्वान कहाँ रह गए| प्रत्येक मनुष्य को अपना स्वाभिमान नहीं छोड़ना चाहिए|