तपस्वी पर राजा का क्रोध
जंगल में ढूढ़ता-ढांढ़ता राजा उस तपस्वी के निकट पंहुचा जो घोर तपस्या कर रहा था| उसका मुख दूसरी ओर था| इसलिए राजा उसे पहचान नहीं पाया कि वह कौन है|
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राजा ने उसे ललकारा, “अरे दुष्ट! तू असहाय अबला स्त्री की सिद्धियों को हड़पने के लिए तपस्या कर रहा है| तुझे लज्जा नहीं आती? ऐसी तपस्या करने से क्या लाभ, जो दुसरों को दुःख पहुंचाए? तू जरूर कोई पाखंडी तांत्रिक है, जो ऐसा कर रहा है| लेकिन जब तक राजा हरिश्चंद्र जीवित है,तब तक वह अपने राज्य में ऐसा अधर्म और अन्याय नहीं होने देगा| मैं तेरी तपस्या को कभी पूरी नहीं होने दूंगा| तू कौन है? उठकर मेरे सामने आ| अन्यथा मेरे अमोघ बाण तुझे बींध डालेंगे|”
हरिश्चंद्र की बाणी का उस तपस्वी पर कोई प्रभाव न होते देख हरिश्चंद्र आगे बढ़ा, “ठहर जा, देखता हूं तुझे|”