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सच्ची प्रार्थना

एक तालाब था| तालाब बहुत गहरा था| गर्मी में भी उसका पानी नहीं सूखता था| तालाब में रंग-बिरंगी मछलियाँ और मेंढक थे| पास के गाँव के लोग आटे की गोलियाँ बनाकर तालाब में डाला करते थे| तालाब में मछलियाँ और मेंढक बड़ी शांति से रहते थे|

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एक बार बरसात के मौसम में पानी नहीं बरसा| तालाब का पानी सूखने लगा| मेंढक और मछलियों को बड़ा कष्ट होने लगा|

मेंढक के झुंड फुदक-फुदककर जाने की तैयारी करने लगे| पर मछलियाँ कहाँ जाती? दो दिनों में सारा तालाब सूना हो गया|

वहीं एक मेंढक था, वह कहीं नहीं गया| उसके साथियों ने कहा भी पर उसने अपनी जन्मभूमि को छोड़कर जाना पसंद नहीं किया| एक मछली ने कहा ‘मेंढक भाई तुम क्यों नहीं गये?’

मेंढक ने कहा ‘मुझे अपनी जन्मभूमि बहुत प्यारी है, दुःख में तुम लोगों ने मेरा साथ दिया है| भला तुम लोगों को कैसे छोड़ सकता हूँ|’

‘मेंढक भाई हम मछलियाँ तो मजबूर हैं| हम तो आपकी तरह फुदक-फुदक कर जा भी नहीं सकती पर तुम तो कहीं जाकर अपने प्राण बचाकर जीवन पा सकते हो|’

मेंढक ने कहा ‘मैं तुम लोगों का साथ छोड़ कर नहीं जाऊँगा| दुःख के दिन आते हैं लेकिन कुछ दिन बाद सुख का नया सवेरा भी होता है| ईश्वर बड़ा दयालु है| सब पर कृपा करता है| दुखी की प्रार्थना में बड़ा बल होता है|’

मेंढक तथा सबने मिलकर बहुत देर तक ईश्वर से प्रार्थना की| सबके मन में यह आया था कि ईश्वर उनकी प्रार्थना अवश्य सुनेगा|

गाँव का एक बालक यह सब सुन रहा था| उसने गाँव में जाकर, गाँव वालों को यह सारी बातें बतायीं| जीव-जंतुओं को भी अपनी माटी से प्रेम होता है| आज हम मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए उन की परवाह नहीं करते|

आओ आज वर्षा के लिए हम भी ईश्वर से प्रार्थना करें| गाँव वालों ने सच्चे मन से प्रार्थना करी और उसी दिन आकाश में काले बादल घिर आये| जोरों की वर्षा हुई और तालाब फिर से पानी से भर गया|

शिक्षा- सच्चे मन से किया गया कार्य हमेशा रंग लाता है|