सच्ची इंसानियत
एक समय की बात है| महात्मा बुद्ध का एक शिष्य उनके पास गया| महात्मा के चरणों में झुककर प्रणाम कर निवेदन किया- “भगवान् मुझे देश के ऐसे अंचल में जाने की अनुमति दें जहाँ अत्यंत क्रूर और भयंकर जन-जातियाँ रहती हों|”
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“वे जातियाँ तुम्हें गालियाँ देंगी, तुम्हें बुरा-भला कहेंगी|” महात्मा बुद्ध ने कहा|
“मैं उनकी गालियों को पुष्पवर्षा समझूँगा| यह उनका उपकार होगा|” शिष्य बोला|
“ये क्रूर अत्याचारी लोग हाथों-पैरों से तुम्हारी पिटाई करेंगे|” महात्मा बुद्ध बोले|
शिष्य ने उत्तर दिया- “यह भी उनकी कृपा होगी कि वे मुझे मारेंगे ही तो| मुझे चोट तो नहीं पहुँचाएँगे|”
“ठीक है, यदि उन्होंने तीक्ष्ण हथियारों से घायल कर दिया तो तुम क्या कहोगे?” महात्मा बुद्ध ने पूछा|
“यह भी उनकी दया होगी| वे अपने हथियारों से मुझे मार सकते हैं पर जान से मारते नहीं| यह भी उनका उपकार होगा|”
“वत्स, यदि उन क्रूर जातियों ने क्रोधित होकर तुम्हें जान से ही मार डाला तो?” महात्मा बुद्ध बोले|
“महाराज, यह भी उनकी दया होगी| इस क्षणभंगुर संसार में शरीर का मोह व्यर्थ है| साथ ही आत्मघात करना भी पाप है|”
शिष्य की बात सुनकर महात्मा बुद्ध ने प्रसन्न होकर कहा- “मुझे पूरा यकीन है कि इन क्रूर, भीषण जन-जातियों का हृदय तुम्हारे मानवप्रेम से प्रभावित हो सकेगा|” सच है सच्चा इंसान वही होता है जिसमें इंसानियत हो|