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सच्चे स्नेह का स्त्रोत

एक बार की बात है| स्वामी रामतीर्थ संयुक्त राज्य अमेरिका गये| बंदरगाह निकट आ रहा था| हर एक व्यक्ति अपना सामान एकत्रित करने लगा| लेकिन स्वामी रामतीर्थ उसी प्रकार बैठे रहे| जबकि दूसरे व्यक्ति अपना सामान इकट्ठा कर रहे थे, और इधर से उधर भाग रहे थे|

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अंत में बंदरगाह आ गया| जहाज भूमि के तट पर जा लगा| सैकड़ों व्यक्ति किनारे पर आए हुए थे| रिश्तेदार और दोस्त लोग खाने वालों का स्वागत कर रहे थे| इन व्यक्तियों की भीड़ का वहाँ इतना शोर हो रहा था, परंतु स्वामी रामतीर्थ वैसे ही बैठे रहे|- पूरी तरह शांत और मौन|

इतने में एक नौजवान और अमेरिकी लड़की वहाँ पहुँची| यह देखकर उसे आश्चर्य हुआ कि जहाज की सारी चहल-पहल का उस व्यक्ति पर कोई असर नहीं| उसे आश्चर्य हुआ कि ये कैसा व्यक्ति है, जिसकी कोई इच्छा नहीं? आखिर उससे रहा नहीं गया| उनके पास जाकर वह पूछने लगी- “आप कहाँ से आए हैं, और कौन हैं?”

स्वामी जी ने जवाब दिया- “मैं हिंदुस्तान का फकीर हूँ|”

“क्या आपके पास यहाँ रुकने के लिए जरुरी पैसा है, या आपकी यहाँ किसी से पहचान है?”

“नहीं, मेरे पास कोई धन-संपत्ति नहीं है| हाँ, मेरा परिचय जरुर है|”

“किससे?”

“आपसे और थोड़ा ईश्वर से|”

“फिर तो आप मेरे घर चलेंगे|”

“ज़रुर चलूँगा|”

स्वामी रामतीर्थ इस भद्र महिला के घर ठहर गए|

एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति और ईश्वर पर ऐसा विश्वास ही सच्चे स्नेह का स्त्रोत बहाता है|

इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि सच्चे स्नेह से सारे काम बन जाते हैं तथा गैर भी अपने हो जाते हैं|