सच्चे चिकित्सक
डॉक्टर दुर्गाचरण नाग बड़े ही सह्रदय चिकित्सक थे| वह न केवल मोहल्ले के रोगियों की चिकित्सा करते थे, अपितु यह भी देखते रहते थे कि उनका कोई पड़ोसी, मोहल्ले का कोई व्यक्ति भूखा, नंगा या रोगी तो नहीं है?
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वह अपनी क्षमता और ताकत के अनुसार भूखों को अनाज, नंगो को वस्त्र रोगियों को दवाई देते रहते थे| गरीब रोगियों से फीस का तो सवाल ही नहीं था, वह उनकी खुराक का खर्चा भी स्वयं दे देते थे| एक दिन एक छोटे से बच्चे को हैजा हो गया| डॉक्टर नाग दिन-भर बच्चे की चिकित्सा में व्यस्त रहेँ पर बच्चे को बचाया न जा सका शाम कोडॉक्टर नग दिनभर बच्चे की चिकित्सा में व्यस्त रहे, पर बच्चे को बचाया न जा सका|
शाम को बहुत देर से जब वह घर लौटे, तब घरवालों ने सोचा कि आज तो डॉक्टर साहब बड़ी फीस लेकर आए होंगे; परंतु उन्होंने देखा- डॉक्टर नाग बहुत ही दुःखी थे| वह आकर बोले- “ग्रहस्थ में एक ही बच्चा था, सब जतन करके भी उसे बचाया न जा सका| वह घर ही सुना हो गया|”
डॉक्टर नाग ने उस रात भोजन तक नहीं किया; उस परिवार के दुःख में वह द्रवित हो गए| वह वास्तव में सच्चे चिकित्सक थे; हमेशा दूसरों के दुःख कष्ट के प्रति संवेदनशील थे| इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि हमेशा प्रत्येक व्यक्ति को दूसरों के दुःख दर्द को अपना दुःख समझना चाहिए|