सच्चा परामर्शदाता
राजा ब्रह्मादत्त वाराणसी या काशी में शासक थे| उनके अमात्य बोधिसत्व थे| एक बार राजमहल की रानियाँ कपड़े और गहने उतार और उन्हें दासी को सौंपकर सरोवर में स्नान करने लगी| दासी को ऊंघती देखकर एक बंदरिया मुक्ताहार ले भागी| जागने पर मुक्ताहार न देखकर दासी चिल्लाई- “एक आदमी मुक्ताहार लेकर भाग गया|”
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पहरेदार ने राह चलते एक ग्रामीण यात्री को पकड़ लिया| पकड़े जाने पर पिटाई के डर से उस देहाती ने अपराध स्वीकार कर लिया और कहा कि उसने हाथ सेठ को दे दिया| सेठ ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया और कहा कि उसने हार पुरोहित को दे दिया है| पकड़े जाने पर पुरोहित ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया और कहा कि उसने मुक्ताहार राजगायक को दे दिया| राजगायक ने भी अपना अपराध मान लिया और कहा कि उसने हार वेश्या को दे दिया है|
इस पूछताछ में सारा दिन बीत गया| राज्य ने पाँचों अभियुक्त अमात्य बोधिसत्व को सौंप दिए और स्वयं राजमहल में चला गया| अमात्य ने सोचा की मुक्ताहार महल के अन्दर खोया है| देहाती गरीब है, उसने जान बचाने के लिए अपना अपराध मान लिया है| रात में पहरेदारों को नियुक्त किया| रात को पाँचों की बातचीत से मालूम हुआ कि वे पाँचों ही निरपराध हैं| मंत्री ने पहरेदारों और सिपाहियों के बल से बंदरिया पकड़ी गई| लाल सुंदर कंठे पहने देखकर चोर बंदरिया ने भी मुक्ताहार निकालकर पहन लिया| वह भी पकड़ी गई|
बंदरिया को पकड़कर मुक्ताहार छीन लिया गया| अमात्य ने पाँचों निर्दोष व्यक्तियों को छुड़वा दिया|
राजा प्रसन्न हुआ और बोला- “युद्ध में बहादुर योद्धा चाहिए, खाने-पीने के समय प्रिय व्यक्ति, और कठिन समस्या उपस्थित होने पर सच्चे पंडित जरुरत होती है| हमारा अमात्य सच्चा पंडित एवं परामर्शदाता है|”
इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि जो सही समय पर सही सलाह दे वही सच्चा परामर्शदाता है|