सच्चा आनन्द
एक बार की बात है एक जिज्ञासु साधक सच्चे आनंद की तलाश में एक महात्मा के पास गया| महात्मा जी से उसने बहुत आग्रह से प्रार्थना की कि वह सच्चे आनंद पर प्रकाश डालें|
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महात्मा जी ने अपनी शांत, सहज मुस्कान से उस व्यक्ति की तरफ देखकर कहा- “आज तो मैं बहुत व्यस्त हूँ| आज तुम जाओ, दस दिन के बाद आना, मैं प्रयास करूँगा कि तुम्हें सच्चे आनंद की प्राप्ति हो जाए| हाँ, इन दस दिनों में तुम परिवार, समाज सबसे अलग रहकर एकांत में मौन व्रत में अपना समय बिताना|”
वह साधक सच्चे आनंद क्या जिज्ञासु था| उसने महात्मा की शर्त का अक्षरशः पालन किया| उन दस दिनों में वह सबसे अलग, पूरी तरह मौन रहकर आत्म-चिंतन में लगा रहा| दस दिन के बाद जब वह महात्मा जी के पास पहुँचा, तब वह उनसे कोई इच्छा करने की बजाय बोला- “आपकी शर्त ने मुझे आनंद-सागर में गोते लगाने का जो अवसर दिया| वह जो इतने सालों में मुझे नहीं मिला, वह इन दस दिनों में एकांतवास और मौन में मिला| अब मेरी कोई इच्छा नहीं रह गई|”