सौंवा दरवाजा
दो राजाओं में युद्ध हुआ| एक जीता, दूसरा हारा| विजयी राजा ने हारे हुए राजा के किले को घेरकर उसके सभी विश्वासपात्र अधिकारियों को कैद कर लिया|
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उन कैदियों में पराजित राजा का युवा मंत्री और उसकी पत्नी भी थे| दोनों पति-पत्नी को किले के एक विशेष हिस्से में कैद कर रखा गया| कैदखाने के दरोगा ने उन्हें आकर समझाया कि या तो हमारे राजा की गुलामी स्वीकार कर लो, नहीं तो खाने के लिए एक दाना भी नहीं मिलेगा और कैदखाने में ही भूखे-प्यासे तड़प-तड़पकर मर जाओगे| मंत्री को जिस भवन में रखा गया था, उसमें सौ दरवाजे थे| सभी दरवाजों पर बड़े-बड़े ताले पड़े हुए थे| मंत्री की पत्नी बहुत घबरा रही थी, किंतु मंत्री शांत था| उसने पत्नी को दिलासा देते हुए कहा, ‘निराश मत होओ प्रिये, गहन अंधकार में भी रोशनी की कोई किरण अवश्य होती है|’
ऐसा कहकर वह एक-एक दरवाजे को धकेलकर देखने लगा| पहला दरवाजा नहीं खुला| दूसरा भी नहीं खुला| लगभग दरवाजे बीस-पच्चीस दरवाजे देखे, पर कोई टस से मस नहीं हुआ| मंत्री को थकान होने लगी और उसकी पत्नी की निराशा बढ़ती जा रही थी| वह बोली, ‘तुम्हारा दिमाग तो ठीक है? इतने बड़े-बड़े ताले लगे हैं, इतनी मोटी-मोटी जंजीरें पड़ी हैं, भला तुम्हारे धक्कों से वे दरवाजे कैसे खुलेंगे? पर मंत्री हताश नहीं हुआ और वह उसी लगन और हिम्मत से एक-एक दरवाजे को धकेलता रहा| निन्यानवें दरवाजे धकेले, परंतु एक भी टस से मस नहीं हुआ| सौवें दरवाजे के सामने खड़ा मंत्री अब भयभीत और पसीने-पसीने हो रहा था| पर सांस बटोरकर उसने सौंवे दरवाजे पर भी धक्का मारा और उसकी चूलें चरमराई| मंत्री का उत्साह वापस आ गया| उसे अनुमान हो गया कि यह दरवाजा खुल सकता है| उसने दोगुने जोश से धक्के मारने शुरु किये और दो-चार कोशिशों के बाद वह दरवाजा सचमुच खुल गया|
‘अरे, यह कैसे खुल गया?’ दूर बैठी उसकी पत्नी बोली| ‘इसलिये कि जिंदगी में कभी सारे दरवाजे बंद नहीं हुआ करते|’ मंत्री ने उसी तरह शांति भाव से कहा|
शिक्षा- मनुष्य को निराश नहीं होना चाहिये संघर्ष से सफलता अवश्य मिलती है|