सिंदबाद जहाजी की छठी यात्रा
मैंने एक साल ही शांति से बिताया होगा कि एक बार फिर मेरे पाँव में खुजली होने लगी इसके बड़े सीधे माने थे कि मेरा दिल यात्रा पर जाने के लिए बेकरार होने लगा था| मैंने तैयारी की और एक दिन अपनी छठी यात्रा पर रवाना हो गया|
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इस बार मेरा मन किसी लंबी यात्रा पर जाने का था और कप्तान ने मुझे बताया कि इस बार की यात्रा काफ़ी लंबी होगी| मगर मेरी यह खुशी अधिक दिनों तक कायम न रह सकी| अचानक हमें पता चला कि कुतुबनुमा की खराबी की वजह से ज़हाज गलत दिशा में जा पहुँचा है| यह सुनते ही हम सब घबरा गए| फिर कुछ देर के बाद कप्तान की हालत खराब हो गई, वह सिर पीट-पीटकर रोने लगा|
जब हम सौदागरों ने उससे इसका कारण पूछा तो वह बोला, “भाई लोगों क्या बताऊँ, लगता है इस बार मेरी तकदीर खराब है| मेरे सितारे गर्दिश में आ चुके है| आज तक ऐसा कभी नही हुआ कि मैं दिशा भटका हूँ| मगर आज तो अजीब हादसे हो रहे है, मैं सिर्फ रास्ता ही नही भटक चुका हूँ बल्कि हमारा ज़हाज एक ऐसी समुद्री धारा में फँस चुका है कि इसमें से अब इसे सीधे रास्ते पर लाना बड़ा ही मुश्किल है| यह समुद्री धारा मौत की धारा के नाम से जानी जाती है और धीरे-धीरे यह बहुत तेज हो जाती है| इसमें फँसकर कुछ देर में ज़हाज टुकड़े-टुकड़े हो जाता है| बस, अब वो मनहूस घड़ी आने ही वाली है| आओ, हम सब मिलकर अपने खुदा को याद कर ले|”
हालांकि कप्तान ने ज़हाज को धारा से निकालने की बहेद कोशिश की थी, मगर वह बेचारा कामयाब नही हो पा रहा था| दरअसल, इस धारा में छोटे-छोटे चट्टानी टापू थे| कप्तान बड़ी मुश्किल से ज़हाज को उन चट्टानों से बचाने की कोशिश कर रहा था|
लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था| एकाएक ही लहर ऐसी उठी कि उसने जबरन ज़हाज को एक चट्टान की ओर धकेल ही दिया| ज़हाज उस चट्टान से टकराकर टुकड़े- टुकड़े हो गया| मगर इससे पहले कि वह डूब जाता, हमने खाने-पीने का कुछ ज़रुरी सामान लेकर टापू पर उतरने में कामयाबी हासिल कर ली थी|
वह चट्टानी टापू वास्तव में एक समुद्री पहाड़ था, जो किसी जवालामुखी के लावे के साथ उभरा होगा| कप्तान ने पहले तो यह देखा कि कोई डूब तो नही गया, जब सभी सही सलामत निकले तो उसने बताया कि खतरा अभी टला नही है और हम सबकी मौत निश्चित थी| उसकी जानकारी के मुताबिक आज तक कोई भी शख्स उस टापू से जिंदा नही लौटा था| उसकी यह बात सुनकर सबके दिल बुझ गए| ज़हाज टूटने पर जीवित बच जाने की जो खुशी थी, वह काफूर हो चुकी थी|
हम उदासियों में डूबकर इधर-उधर घूमने लगे| हमने वहाँ बहुत से ज़हाजो के ऐसे टुकड़े देखे जो पहले वहाँ आकर तहस-नहस हो चुके थे| वहाँ के लोगों की हड्डियाँ और खोपडियाँ भी पड़ी हुई थी| उन लोगों की लाशों को यकीनन गिद्दों ने नोच खाया होगा| वहाँ बहुत-सा माल बिखरा पड़ा था, जो तिजायती था|
यहाँ एक उल्टी नदी भी मैंने बहती देखी| इसे उल्टी कहना इसलिए मुनासिब है कि संसार भर की नदियाँ समुद्र में आकर गिरती है, मगर यह अनोखी नदी समुद्र से निकलकर टापू की तरफ़ बह रही थी| जब हम यह देखने गए कि यह कहा तक गई तो एक गुफ़ा के किनारे पर जाकर हमें रुकना पड़ा| वह नदी गुफ़ा में समा गई थी और गुफ़ा में गहरा अँधेरा था|
इस गुफ़ा के बाहर बेहद कीमती पत्थर पड़े थे जिन्हें हीरे-जवाहरात कहना ज्यादा मुनासिब होगा| यदि यहाँ आना आसान होता और उतना ही आसान यहाँ से जाना भी होता तो इन कीमती पत्थरों का यहाँ नामो-निशान भी नही मिलना था| यहाँ तो ज़हाज ढंग से पहुँच नही पाता था कि चट्टानों से टकराकर चूर-चूर हो जाता था| हम लोग गुफ़ा देखकर वापस किनारे पर आ गए ओर वही डेरा डाल दिया|
धीरे-धीरे दिन बीतने लगे इसी के साथ एक-एक करके हमारे साथी मरने लगे| जो आदमी मर जाता, उसे हम वहाँ किसी गुफ़ा में दफना देते थे| अंत में एक दिन ऐसा भी आया कि मैं अकेला ही जीवित बचा| मेरे जिंदा रहने का कारण यह था कि मैंने अपना खाना-पीना तो एहतियात से इस्तेमाल किया ही था| अपने आत्मबल को भी कमज़ोर नही होने दिया था|
मैं ऐसी-ऐसी भयानक मुसीबतें अब तक झेल चुका था कि यह वाक्या मुझे कोई बड़ी मुसीबत नही लगा था| मैं जानता था कि अगर मेरी जिंदगी बाकी रही तो अल्लाह ताला यहाँ से निकलने का कोई न कोई रास्ता मुझे सुझा ही देगा और अगर उसकी मर्जी यह होगी कि अपने साथियों की तरह में भी यही दम तोड़ूँ तो मुझे कोई नही बचा सकता था| अकेले-अकेले अब टापू पर समुद्र के किनारे बैठने से मुझे डर लगने लगा तो मैं उठकर नदी के किनारे-किनारे चलता हुआ उस अंधेरी गुफ़ा के दरवाजे तक आ गया| मेरा ख्याल था कि जब यह नदी इस गुफ़ा में दाखिल हो रही है तो, कहीं न कहीं जाकर तो निकलती ही होगी| हो सकता है उस तरफ़ जीवन हो|
गुफ़ा के अंदर पानी बड़ी तेजी से जा रहा था| मैंने एक पल भी जाया न किया और आसपास से पुराने ज़हाजों के टूटे पड़े फट्टे व टहनियाँ वगैरह इकठ्ठे करके उन लट्ठों-फट्टों को आपस में बाँधकर एक तख्ता सा तैयार किया| तभी मेरे दिमाग में आया कि अगर गुफ़ा में दाखिल होकर मैं किसी दुनिया में पहुँचा और इतफाक से जिंदा बच गया तो ये कीमती पत्थर मेरे काम आ सकते है, वरना मेरी मौत के साथ ये भी यही रह जाएँगे, तो कुछ कीमती पत्थर क्यों न इकठ्ठे कर लिए जाएँ| यही सोचकर मैंने कीमती पत्थरों की कुछ पोटलियाँ बाँध ली| फिर तख्ते को पानी में धकेल कर उस पर सवार हो गया|
तख्ता तेजी से बहते पानी के साथ अँधेरी गुफ़ा में दाखिल हो गया| अंदर अँधेरा ही अँधेरा था और वहाँ पानी का इतना ज्यादा शोर था कि उसके सिवा कुछ भी सुनाई नही दे रहा था|
मैंने तख्ते पर लेटकर आँखे बंद कर ली और अपने आपको भाग्य के सहारे छोड़ दिया| तख्ता बहता रहा और मैं आँखें बंद करके उस पर पड़ा रहा| कभी-कभी तख्ता गुफ़ा की दीवारों से टकरा जाता था, मगर मुझे कोई डर नही था| फिर पता नही कब मेरी आँख लग गई| मैं दरअसल सोया नही था, बल्कि कमज़ोरी की वजह से बेहोश हो गया था|
पता नही कितने घंटे कितने दिन में बेहोश रहा| मगर जब मेरी आँख खुली तो अपने आस-पास का वातावरण देखकर मैं भोचक्का रह गया| मेरा तख्ता नदी के किनारे एक खूंटे से बँधा हुआ था| वहाँ दिन का उजाला फैला हुआ था| मैंने देखा कि मुझसे कुछ ही दूरी पर कुछ लोग बैठे थे| उन्होंने मुझे होश में आया देखा तो उठकर मेरे पास आ गए और अपनी बादशाह में पूछने लगे कि मैं कौन हूँ| मगर मैं उनकी बादशाह नही जानता था, इसलिए मैंने अपनी अरबी बादशाह में उनसे कुछ सवाल किए तो वे मेरा मुँह ताकने लगे| दरअसल, वे लोग अरबी बादशाह नही जानते थे| फिर उन्होंने आपस में मंत्रणा करके ऐसे आदमी को बुलाया जो शायद अरबी बादशाह जानता था|
उस आदमी ने आकर मुझसे अरबी में बातचीत की और बताया कि वह कई बार अरब की यात्रा कर चुका है| मैंने उसे अपने बारे में बता दिया| तब उसने मुझे बताया कि उस समय मैं हिंदुस्तान में था और अब मैं किसी प्रकार की चिंता न करुँ| वे मुझे अपने साथ ले गए| पहले मुझे नहलाया गया व नए वस्त्र दिए गए|
उसके बाद वे लोग मुझे तथा मेरी गठरियों को साथ लेकर एक तरफ़ चल पड़े| वह सरान द्वीप (लंका) था| मैंने राजदरबार में प्रवेश किया और सिंहासन पर बैठे राजा को देखकर हिंदुओं की प्रथानुसार उसे प्रणाम किया और उसके सिंहासन को चूमा|
बादशाह ने पूछा, “तुम कौन हो?”
मैंने कहा, “मेरा नाम सिंदबाद ज़हाजी है| मैं बगदाद नगर का निवासी हूँ|”
उसने कहा, “तुम कहाँ जा रहे हो और मेरे राज्य में कैसे आ गए?”
मैंने उसे अपनी यात्रा का वृतांत बताया| उसे यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ| उसने आज्ञा दी कि मेरे पूरे वृतांत को लिख लिया जाए, ताकि यह उनके इतिहास की तथा अन्य ज्ञानवर्धक पुस्तकों में भी जगह पा सके|
उसने मेरी गठरियाँ खोलने की आज्ञा दी| उनमें बहुमूल्य रत्नों तथा चंदन आदि अन्य वस्तुओं को देखकर उसे और भी आश्चर्य हुआ|
मैंने कहा, “महाराज! यह सब आप ही का है| आप इसमें से जितना चाहे ले ले| बल्कि सब कुछ लेना चाहे तो वह भी ले ले|”
इस पर उसने मुस्कुराकर उत्तर दिया, “नही, यह सब तेरा है| हम इसमें से कुछ नही लेंगे|” फिर उसने आज्ञा दी, “इस मनुष्य को इसके माल-असबाब के साथ एक अच्छी जगह पर ठहराओ| इसकी सेवा के लिए अनुचर रखो और हर प्रकार से इसकी सुख-सुविधा का ख्याल रखो|”
उसके सेवकों ने ऐसा ही किया और मुझे एक शानदार मकान में ले जाकर ठहराया| अब मैं शाही मेहमान बन गया था| वहाँ रहकर मैं रोज़ दरबार में जाया करता था और वहाँ से छुट्टी मिलने पर इधर-उधर घूम-फिरकर राज्य की देखने योग्य चीजें देखा करता था| मुझे घूमने के लिए एक बग्घी व नौकर मुहैया करा दिया गया था| वह व्यक्ति, जो अरबी बादशाह जानता था, मेरे साथ छोड़ दिया गया था ताकि मुझे बादशाह संबंधी परेशानी न हो|
सरन द्वीप भूमध्य रेखा के दक्षिण में है, इसलिए वहाँ सदैव ही दिन और रात बराबर होते है| उस द्वीप की लंबाई चालीस कोस है और वहाँ ऊँचे-ऊँचे पहाड़ है| वहाँ से समुंद्र तट तीन दिन की राह पर है| वहाँ लाल (मणि) तथा अन्य रत्नों की कई खानें है और वहाँ कोरण्डी नामक पत्थर भी पाया जाता है, जिससे हीरों और रत्नों को काटते और तराशते है| वहाँ नारियल के तथा अन्य कई फलों के वृक्ष भी बहुतायत से है| वहाँ के समुंद्र में मोती भी बहुत मिलते है| हज़रते आदम, जो कुरान और बाइबल के अनुसार आदि पुरुष है, जब स्वर्ग से उतारे गए थे, तो इसी द्वीप के एक पहाड़ पर लाए गए थे| मैंने वहाँ घूम-फिरकर सब कुछ देखा| वाकई हिंदुस्तान बेहतरीन मुल्क है| वहाँ के लोग भी बड़े मिलनसार है|
कुछ दिनों बाद मैंने बादशाह से निवेदन किया कि आप मुझे अपने मुल्क बगदाद जाने की अनुमति दी जाए| बादशाह ने मेरी बात मान ली| मेरे लिए महाराज की तरह से एक ज़हाज का इंतजाम करवाया गया और बहुत से इनाम-इकराम के साथ मुझे विदा किया गया| जब मैं चलने लगे तो महाराज ने मुझे एक चिट्ठी दी और कहा, “सिंदबाद! हमारी यह चिट्ठी अपने सुल्तान हारुन अल रशीद को देना| हम उनसे दोस्ती के इच्छुक है| उनसे कहना कि हम हमेशा उनकी तरक्की की कामना करते है|” हमारे सुल्तान (अमीर) के लिए ढेर सारे तोहफे और हीरे-जवाहरात भी महाराज ने दिए|
सरां द्वीप के बादशाह ने जो पत्र खलीफ़ा के नाम दिया था, वह पीले रंग के नर्म चमड़े पर लिखा था| यह चमड़ा किसी पशु विशेष का था, ‘और बहुत ही मूल्यवान था| उस पर बैंगनी स्याही से पत्र लिखा गया था| पत्र का लेख इस प्रकार था, ‘यह पत्र सरां द्वीप के बादशाह की ओर से भेजा जा रहा है| उस बादशाह की सवारी के आगे एक हज़ार सजे-सजाए हाथी चलते है| उसका राजमहल ऐसा शानदार है, जिसकी छतों में एक लाख मूल्यवान रत्न जड़े है और उसके खजाने में अन्य वस्तुओं के अतिरिक्त बीस हज़ार हीरे जड़े मुकुट रखे है| सरान द्वीप का बादशाह खलीफ़ा हारुन रशीद को निम्नलिखित उपहार भातृत्व भाव से भेज रहा है| वह चाहता है कि खलीफ़ा और उसके मैत्री-संबंध दृण हो जाएँ| मैं सरान द्वीप का बादशाह खलीफ़ा की कुशल-क्षेम चाहता हूँ|’
जो उपहार बादशाह ने खलीफ़ा को भेजे थे, उनमें मणि का बना हुआ एक प्याला था, जिसका तला पौन गिरह (लगभग पौने दो इंच) मोटा था और उसके चारों ओर मोतियों की झालर थी| झालर के मोतियों में प्रत्येक मोती तीन माशे के वजन का था| एक बिछौना अजगर की खाल का था, जो एक इंच से अधिक मोटा था| इस बिछौने की विशेषता यह थी कि उस पर सोने वाला आदमी कभी बीमार नही पड़ता था| तीसरा उपहार एक लाख सिक्कों के मूल्य की चंदन की लकड़ी थी| चौथा उपहार तीन दाने कपूर के थे, जो एक-एक पिस्ते के बराबर थे| पाँचवा उपहार एक दासी थी, जो अत्यंत रुपवती और अति मूल्यवान वस्त्राभूषणों से सुसज्जित थी|
हमारा ज़हाज कुछ समय की यात्रा के बाद सकुशल बसरा के बंदरगाह पर पहुँच गया| मैं अपना सारा माल और खलीफ़ा के लिए भेजा गया पत्र और उपहार लेकर बगदाद आया| सबसे पहले मैंने यह किया कि उस दासी को, जिसे मैंने परिवार के युवकों से सुरक्षित रखा था तथा अन्य उपहार और पत्र लेकर खलीफ़ा के राजमहल में पहुँचा|
मेरे आने की बात सुनकर खलीफ़ा ने मुझे तुरंत बुला भेजा| उसके सेवकगण मुझे सारे सामान के साथ खलीफ़ा के सम्मुख ले गए| मैंने ज़मीन चूमकर खलीफ़ा को पत्र दिया| उसने पत्र को पूरा पढ़ा और फिर मुझसे पूछा, “तुमने तो सरान द्वीप के बादशाह को देखा है, क्या वह ऐसा ही ऐश्वर्यशाली है, जैसा इस पत्र में लिखा है?”
मैंने कहा, “वह वास्तव में ऐसा ही है, जैसा उसने लिखा है| उसने पत्र में बिल्कुल अतिशयोक्ति नही की| मैंने उसका ऐश्वर्य और प्रताप अपनी आँखों से देखा है| उसके राजमहल की शानो-शौकत का शब्दों में वर्णन नही हो सकता| जब वह कही जाता है तो सारे मंत्री और सामंत अपने-अपने हाथियों पर सवार होकर उसके आगे-पीछे चलते है| उसके अपने हाथी के हौदे के सामने अंगरक्षक सुनहरे काम के बरछे लिए चलते है और पीछे सेवक मोरछल हिलाता रहता है| उस मोरछल के सिर पर एक बहुत बड़ा नीलम लगा हुआ है| सारे हाथियों के हौदे और साज-सामान ऐसे है, जिसका वर्णन मेरे वश की बात नही है|
“जब बादशाह की सवारी चलती है तो उद्घोषक उच्च स्वर में कहता है- ‘यह उस बादशाह की सवारी जा रही है जिस के महल में एक लाख रत्न जड़े है और जिसके पास बीस हज़ार हीरे जडित मुकुट है और जिसके सामने कोई राजा ठहर नही सकता, चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान| पहले उद्घोषक के बोलने के बाद दूसरा उद्घोषक कहता है कि बादशाह के पास चाहे जितना ऐश्वर्य हो, मरना तो इसका प्रारब्ध है| इस पर पहला कहता है कि इसे सब लोगों का आशीर्वाद मिलना चाहिए ताकि यह अनंत जीवन पाए|’
“वह बादशाह इतना प्रिय है कि उसके राज्य में न कोई न्य्यायाधीश है, न कोतवाल| उसकी प्रजा ऐसी सुबुद्ध है कि कोई न किसी पर अन्याय करता है, न किसी को दुख पहुँचाता है| चूंकि सब लोग बड़े मेल-मिलाप में रहते है, इसलिए कोई जरुरत ही नही पड़ती कि व्यवस्था ऊपर से काम की जाए, इसलिए सरान द्वीप के राज्य में न पुलिस या कोतवाल रखे गए है, न न्यायाधीश|”
खलीफ़ा ने यह सुनकर कहाँ, “तुम्हारे वर्णन और इस पत्र से जान पड़ता है कि वह बादशाह बड़ा ही समझदार और होशियार है, इसलिए वहाँ इतनी अच्छी व्यवस्था है कि पुलिस आदि की आवश्यकता ही न हो|” यह कहकर खलीफ़ा ने मुझे खिलअत (सम्मान परिधान) दी तथा ढेर सारे इनाम देकर मेरी इज्जत बढ़ाई|
यह कहानी कहकर सिंदबाद ने कहा कि आप लोग कल फिर आएँ तो मैं अपनी सातवीं और अंतिम समुंद्री यात्रा का वर्णन करुँगा|
यह कहकर पहले की तरह उसने चार सौ दिनारें हिंदबाद को दी| दूसरे दिन भोजन के समय हिंदबाद आया साथ ही सिंदबाद के मुसाहिब भी आए| भोजनोपरांत सिंदबाद ने अपनी सातवीं यात्रा की कहानी शुरु की|