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सिखों के छठे गुरु हरगोविंद जी की कारामुक्ति

सिखों के छठे गुरु हरगोविंद जी भी इसी दिन कारावास से मुक्त हुए थे। आप पाँचवें गुरु श्री गुरु अर्जुनदेव जी के इकलौते पुत्र थे। सिखों पर मुगलराज्य के कोप की दिनोंदिन वृद्धि होती जाती थी।

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आपके पिता श्री गुरु अर्जुनदेव जी शहीद हो ही चुके थे। इसलिए श्री गुरु हरगोविंद जी ने यह निश्चय किया कि संतस्वरूप के साथ-साथ वीरता का वेश धारण करना भी आवश्यक है। इसलिए जब वे गुरु गद्दी पर विराजे तो भारत की अधोगति को देख स्वरक्षा और देश के उद्धार के लिए आपने उन्होंने गले में दो खड्ग धारण किए- एक मीरी का, दूसरा पीरी का। सब सिखों को आपने शस्त्र धारण करने की आज्ञा दी और भक्ति ज्ञान के साथ-साथ शूरवीरता का उपदेश देना आरंभ किया। संवत. १६६५ में श्री हरिमंदिर साहिब के सम्मुख आपने एक राजसिंहासन बनवाया और अपना ठाट-बाट पूरा राजाओं का सा बना लिया। यह स्थान अब भी श्रीअकाल-तख़्त के नाम से प्रसिद्ध है। श्री अमृतसर को सुरक्षित बनाने के लिए आपने यही एक किला भी बनवाया, जो अब ‘लोहगढ़’ के नाम से प्रसिद्ध है।

एक बार हरगोविंद जी के कुछ दुश्मनों की झूठी शिकायत पर जहाँगीर ने गुरु साहब को उनके कुछ साथियों के साथ ग्वालियर के किले में कैद कर लिया। इससे गुरु साहब की मान-मर्यादा घटी नहीं किंतु और बढ़ी। दूर-दूर से श्रद्धालु जन गुरु साहब के दर्शनार्थ ग्वालियर पहुँचने लगे। कई मुसलमान साधु-फकीरों के समझाने पर जहाँगीर को झूठ का पता चला और गुरु जी की निर्दोषता उसके सामने साबित हो गई। जहाँगीर ने गुरु साहब को छोड़ने की आज्ञा दे दी, परंतु गुरु साहब ने कहला भेजा कि जब तक हमारे दूसरे साथी, जो क़िले में कैद हैं, नहीं छोड़े जाते तब तक हम भी बाहर नहीं आ सकते। लगभग साठ छोटे-बड़े हिंदू राजा, कवि, पंडित आदि इस क़िले में कैद थे। इस पर जहाँगीर ने आज्ञा दी कि जितने राजा गुरु साहब का पल्ला पकड़ कर बाहर आ जाएँ वे सब छोड़ दिए जाएँ। इस पर गुरु साहब ने साठ पल्लों का एक जामा बनवा कर पहना और प्रत्येक कैदी गुरु साहब का एक-एक पल्ला पकड़कर बाहर आ गया। वह दीपावली का दिन था। उसी समय से गुरु हरगोविंद साहब का नाम ‘बंदीछोर’ प्रसिद्ध हुआ।